मोरकुटी1

मोरकुटी युगलरस लीला-1

पूर्वराग
मोरकुटी में अत्यधिक सुंदर मयूर मयूरी कुछ घड़ी पूर्व से नृत्य कर रहे हैं।सुंदर सन सन की ध्वनि करते मयूर के पंख सर सर करती पवन लहरियों के संग मधुर संगीत की ताल से ताल मिलाते प्रतिपल गहन रस संचार करते जा रहे हैं।
   
     मयूर अपने सुघड़ सतरंगी पंखों को लहराते हुए निकुंज धरा पर कभी गोलाकार तो कभी पदचाप से झुक कर फिर खड़े होकर अनवरत रसपूर्ण नृत्य करता है।कभी धरा को अपने नयनजल से सींचता है तो कभी नीले आसमान को देख देख मुखध्वनि से कुछ अनकही कहना चाह रहा है।मोरकुटी की पावन धरा पर मयूर मयूरी की प्रेमरस से भरी क्रीड़ा मधुर तो है ही और साथ ही साथ इनकी उल्लसित भावदशा का भी सुंदर आख्यान कर रही है।

       धरा पर गिर रहे अश्रुजल रज से मिल कर जो रस उत्पन्न कर रहे हैं उसे मयूरी अपनी रस तृषित चोंच से मुख में भरती हुई हृदय में संजोती जा रही है।मयूर के इर्द गिर्द नृत्य मुद्रा में घूमती हुई ये मयूरी निकुंज धरा पर लोटती लोटती जमींतोश हो जाना चाहती है तो कभी आकाश में ऊपर उड़ जाना चाहती है।मयूर भी अपनी संगिनी मयूरी की दशा देख उसे निरंतर अश्रु बहाते देख नृत्य करते करते बार बार अपने पंखों से सहलाता है।
 
     कई कई घड़ियों से बिना अंतराल यह सुंदर नृत्य दर्शन करतीं रसिक अखियाँ निहार निहार निहाल हुई जातीं हैं इस अधरा विशुद्ध प्रेम पर !!

बलिहारी !!
आखिर अनवरत नृत्य व प्रेम रस का बहाव किस ओर बह चले यह तो कोई प्रेमी हृदय ही जान सकता है।किस पूर्वराग हेतु ये मयूर युगल यहाँ मोरकुटी की धरा के रंग रूप में परछन्न उतरे हैं अद्भुत प्रेम रस प्रवाह करते।आखिर कौन इन मयूर मयूरी के इस लुभावने प्रेम नृत्य का साक्षी यहाँ बना है जिनकी उपस्थिति इस मयूर युगल को रस प्रदान भी कर रही है और रसातुर भी।
क्रमशः

जय जय युगल !!
जय जय युगलरस विपिन वृंदावन !!

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