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मेरे तो गिरधर गोपाल 48- आपके ऐसे मृदुल स्वभाव को सुनकर ही आपके सामने आने की हिम्मत होती है। अगर अपनी तरफ देखें तो आपके सामने आने की हिम्मत नहीं होती। आपने वृत्रासुर, प्रह्लाद, विभीषण, सुग्रीव, हनुमान, गजेन्द्र, जटायु, तुलाधार वैश्य, धर्मव्याध, कुब्जा, व्रज की गोपियाँ आदि का भी उद्धार कर दिया, यह देखकर हमारी हिम्मत होती है कि आप हमारा भी उद्धार करेंगे।जैसे अत्यन्त लोभी आदमी कूडे़-कचडे़ में पडे़ पैसे को भी उठा लेता है, ऐसे ही आप भी कूडे़-कचडे़ में पडे़ हम-जैसों को उठा लेते हो। थोड़ी बात से ही आप रीझ जाते हो।-‘तुम्ह रीझहु सनेह सुठि थोरें’।कारण कि आपका स्वभाव है- रहति न प्रभु चित चूक किए की। करत सुरति सय बार हिए की। अगर आपका ऐसा स्वभाव न हो तो हम आपके नजदीक भी न आ सकें; नजदीक आने की हिम्मत भी न हो सके! आप हमारे अवगुणों की तरफ देखते ही नहीं। थोड़ा भी गुण हो तो आप उस तरफ देखते हो। वह थोड़ा भी आपकी दृष्टि से है। हे नाथ! हम विचार करें तो हमारे में राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह अभिमान आदि कितने ही दोष भरे पड़े हैं। हमारे से आप ज्यादा जानते हो, पर जानते हुए भी आप उनको मानते नहीं- ‘जन अवगुन प्रभु...