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मेरे तो गिरधर गोपाल
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प्यास लगे तो पानी पी लिया, भूख लगे तो रोटी खा ली, ठण्ड लगे तो कपड़ा ओढ़ लिया, नहीं मिले तो नहीं सही! शरीर जाय तो अच्छी बात, रहे तो अच्छी बात, अपना कोई मतलब नहीं। न शरीर के रहने से कोई मतलब, न शरीर जाने से कोई मतलब। हमारा मतलब केवल भगवान् से है। केवल भगवान् हमारे हैं, हम भगवान् के हैं- ऐसा सोचकर मस्त हो जाओ, आनन्द में हो जाओ, नाच उठो कि आज हमें पता चल गया, आज तो मौज हो गयी! अब हम किसी की गुलामी नहीं करेंगे। ऊपर-नीचे, बाहर-भीतर सब जगह एक परमात्मा ही हैं-

बहिरन्तश्च भूतानामचरं चरमेव च।


यच्च किंचितज्जगत्यस्मिन्दृश्यते श्रूयतेऽपि वा।
अन्तर्बहिश्च तत्सर्वं व्याप्य नारायणः स्थितः।
वह परमात्मा नजदीक-से-नजदीक है, दूर-से-दूर है, बाहर-से-बाहर है, भीतर-से-भीतर है। एक परमात्मा-ही-परमात्मा है और वह अपना है- ऐसा सोचकर मस्त हो जाओ। कोई आये तो परमात्मा है, कोई जाय तो परमात्मा है। कोई कुछ करे, परमात्मा-ही-परमात्मा है। उस परमात्मा को पुकारो कि ‘हे नाथ! हे मेरे नाथ! मैं आपको भूलूँ नहीं।’ आपका जन्म सफल हो जायगा! यह कितनी बढ़िया बात है! कितनी ऊँची बात है! कितनी सच्ची बात है! कितनी निर्मल बात है! कोई क्या करता है, यह आप मत देखो। हमें उससे क्या मतलब है?

तेरे भावै कछु करौ, भलो बुरो संसार।
‘नारायन’ तू बैठि के, अपनौ भवन बुहार।

हमारा मतलब केवल भगवान् से है। हम अच्छे हैं तो उनके हैं, बुरे हैं तो उनके हैं-

जौ हम भले बुरे तौ तेरे ।
तुम्हैं हमारी लाज-बड़ाई, बिनती सुनि प्रभु मेरे।

संसार में तो एक तिनका भी हमारा नहीं रहेगा, नहीं रहेगा, नहीं रहेगा। अपना है ही नहीं तो कैसे रहेगा? संसार का प्रतिक्षण आपसे वियोग हो रहा है। जन्म लेने के बाद जितने वर्ष बीत गये, उतने वर्ष तो आप मर ही गये और बाकी जो दिन बचे हैं, वे भी जाने वाले हैं। एक भगवान् के सिवाय अपना कुछ नहीं है। इसलिये भगवान् को पुकारो कि हे प्रभो! हे मेरे प्रभो! मेरा कोई नहीं है, केवल आप ही मेरे हो, और कोई मेरा नहीं है। फिर मौज हो जायगी, आनन्द हो जायगा! मेरे तो भगवान् हैं- इस बात को लेकर नाचने लग जाओ, कूदने लग जाओ कि आज हमारा काम हो गया! सब कुछ भगवान के चरणों में अर्पण कर दो। स्वप्न में भी किसी की गुलामी मत करो। हृदय से गुलामी निकाल दो। नाचने लग जाओ कि बस, आज तो हम निहाल हो गये! कोई पूछे कि अरे! क्या मिल गया? तो कहो कि जो मिलना चाहिये था, वह मिल गया। वह परमात्मा स्वतः सबको मिला हुआ है, सबके भीतर विराजमान है। वह हमारा अपना है। और किसी से हमें कोई गरज नहीं, किसी की आवश्यकता नहीं, किसी की परवाह नहीं। कोई राजी रहे तो मौज, नाराज हो जाय तो मौज। हम किसी को दुःख नहीं देते, किसी के विरुद्ध कुछ करते नहीं, स्वप्न में भी किसी का अहित नहीं चाहते, फिर कोई राजी रहे या नाराज, यह उसकी मरजी। हमारा किसी से कोई मतलब नहीं।
(साभार- स्वामी रामसुखदास जी, क्रमशः)

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