मेरे तो गिरधर गोपाल 1

मेरे तो गिरधर गोपाल
1-
मानव शरीर भगवान् की कृपा से मिला है और केवल भगवान्-की प्राप्ति के लिये मिला है। इसलिये सब काम छोड़कर भगवान् में लग जाना चाहिये। जिनकी उम्र ज्यादा हो गयी है, उनको तो भगवान् में लगना ही है, जिनकी उम्र छोटी है, उनको भी सच्चे हृदय से भगवान् में लगना है। संसार का सब काम कर देना है, पर अपना असली ध्येय, लक्ष्य, उद्देश्य केवल परमात्मा की प्राप्ति ही रखना है।

वास्तव में सत्ता एक परमात्मा की ही है। संसार की तरफ आप ध्यान दें तो यह सब मिटने वाला है और निरन्तर मिट रहा है। आप अपनी तरफ देखें कि जब आप अपनी माँ के पेट से पैदा हुए, उस समय शरीर की कैसी अवस्था थी और आज कैसी अवस्था है। संसार निरन्तर बदलने वाला है और परमात्मा निरन्तर रहने वाले हैं। संसार रहने वाला है ही नहीं और परमात्मा बदलने वाले हैं ही नहीं। वे परमात्मा हमारे हैं और हम परमात्मा के हैं- इसमें दृढ़ता होनी चाहिये। जैसे छोटा बालक कहता है कि माँ मेरी है। उससे कोई पूछे कि माँ तेरी क्यों है, तो इसका उत्तर उसके पास नहीं है। उसके मन में यह शंका ही पैदा नहीं होती कि माँ मेरी क्यों है? माँ मेरी है, बस, इसमें उसको कोई सन्देह नहीं होता। इसी तरह आप भी सन्देह मत करो और यह बात दृढ़ता से मान लो कि भगवान् मेरे हैं। भगवान् के सिवाय और कोई मेरा नहीं है; क्योंकि वह सब छूटने वाला है। जिनके प्रति आप बहुत सावधान रहते हैं, वे रूपये, जमीन, मकान आदि सब छूट जायँगे। उनकी याद तक नहीं रहेगी। अगर याद रहने की रीति हो तो बतायें कि इस जन्म से पहले आप कहाँ थे? आपके माँ-बाप, स्त्री-पुत्र कौन थे? आपका घर कौन-सा था? जैसे पहले जन्म की याद नहीं है, ऐसे ही इस जन्म की भी याद नहीं रहेगी। जिसकी याद तक नहीं रहेगी, उसके लिये आप अकारण परेशान हो रहे हो। यह सबके अनुभव की बात है कि हमारा कोई नहीं है! यह सब मिले हैं और बिछुड़ जायँगे। इसलिये ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’ -ऐसा मानकर मस्त हो जाओ। संसार का काम बिगड़ रहा है तो बिगड़ने दो। वह तो बिगड़ने वाला ही है। सुधर जाय तो भी बिगड़ेगा। उसकी चिन्ता मत करो। आरम्भ में थोड़ा-सा बिगड़ेगा, परन्तु पीछे बहुत बढ़िया हो जायगा। दुनिया सब-की-सब चली जाय तो परवाह नहीं है। मैं और भगवान-इन दो के सिवाय और कोई नहीं है। मैं केवल भगवान् का हूँ और केवल भगवान् मेरे हैं- इसके सिवाय और किसी बात की तरफ देखो ही मत, विचार ही मत करो।
एक परमात्मा ही सब जगह परिपूर्ण हैं। उनके सिवाय और कोई है नहीं, कोई हुआ नहीं, कोई होगा नहीं, कोई हो सकता नहीं। वे परमात्मा ही मेरे हैं- ऐसा मानकर मस्त हो जाओ, प्रसन्न हो जाओ। हम अच्छे हैं कि मन्दे हैं, इसकी फिक्र मत करो। जैसे भरत जी महाराज चित्रकूट जाते हुए माँ कैकेयी की तरफ देखते हैं तो उनके पैर पीछे पड़ते हैं, और अपनी तरफ देखते हैं तो खड़े रहते हैं, पर जब रघुनाथ जी महाराज की तरफ देखते हैं तो दौड़ पड़ते हैं-
जब समुझत रघुनाथ सुभाऊ। 
तब पथ परत उताइल पाऊँ।
ऐसे ही आप अपनी करनी की तरफ मत देखो, अपने पापों की तरफ मत देखो, केवल भगवान की तरफ देखो। जैसे विदुरानी भगवान् को छिलका देती हैं तो भगवान् छिलका ही खाते हैं। छिलका खाने में भगवान् को जो आनन्द आता है, वैसा आनन्द गिरी खाने में नहीं आता। कारण कि विदुरानी के मन में यह भाव है कि भगवान् मेरे हैं। जैसे बच्चे को भूखा देखकर माँ जिस भाव से उनको खिलाती है, उससे भी विशेष भाव विदुरानी में है। ऐसे ही आप भगवान को अपना मान लो। जीने-मरने आदि किसी की भी परवाह मत करो। किसी से डरो मत। किसी की भी गर्ज करने की जरूरत नहीं। बस, एक ही विचार रखो कि ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई’। अगर यह विचार कर लोगे तो निहाल हो जाओगे। परन्तु बहुत धन कमा लो, बहुत सैर-शौकीनी कर लो, बहुत मान-बड़ाई प्राप्त कर लो तो यह सब कुछ काम नहीं आयेगा।
(साभार- स्वामी रामसुखदास जी) क्रमशः

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