आँचल प्यारी

सद्गुरू सब गुणगन कहै,मौ मन छटपट याई।
औगुन करि अब लौ बडै,तऊ कौन मुह यश गाई।।१
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नैननि नीच नीचै गिरै,बिनु सुख युगल निहारि।
आप तौ गये पंकनि परै,दए सद्गुर नाम बिगारी।।२
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कौन कहौ मौ सम अधम,गुरबाणि बिसराय।
नाम जपै नाय भजन करै,विरथा जनम गवाय।।३
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निति नाय कोउ जानतौ,नाय कौउ बरत उपवास।
तापै सहज सनेह अति,यह अचरज कौ बात।।४
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निजही निज मै लग्यौ रह्यै,औगुण गुण अट्कयौई।
ता कबहु लीला बिचरै,उर अबकाश ना होई।।५
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अबही समै लै साध हिय,कुंज वृंदावन संग साथ।
पाछे जनम गवाय कै,रौवत धरि कर माथ।।६
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किरपा अति नाय कम कबहु,बरसत सदा इक धार।
मन मटका औंधा धरा,या हु तौ बात बिचार।।७
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गुरू चरणनि धारि ह्रदय,सुन इनकी कहि सुजान।
अरू सुनिकै तुरत अमल करै,पाछै पै नाय डार।।८
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श्रीगुरू चरण चिन्ह पै,बाढै इक इक धर पाम।
एकहु दिना तौ जा मिल्यौ,जुगल नेह सुखधाम।।९
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इन चरणन की कहा कहै,जामै हा हा खाय कै रोय।
कुँवरि मान छुडाय हित,करि कुँवर विनय सिर नोय।।१०
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अनुगत रह इनकै सदा,कहि करै जो कोई।
सहज गति सोई पाइये,दुर्लभ जप ब्रत होई।११
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महल टहल सिखाय दै,डाँटि कबहु कहि प्यार।
जानि एक नियम इनकौ दृढ,पगै जुगल रहत विहार।।१२
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नित सेवा नित नवीन चौप,नित नवी नवी जोरि साज।
उर इनके रहिए सदा उठी,नित नवल नवी सुख बात।।१३
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जग होय तऊ ना हौय,गयै ना गयै अब लौ।
सदा संग रस पथिक के,रसजोरि हित करबौ।।१४
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श्रीगुरू चरण धरि सिर कहै येई,"प्यारी" उर कै बिचार।
तजि सद्गुरू युगल भजै कोउ,सकै लेय ना कौउ सम्हार।।१५
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दोहा------ कहि सकै कौ कौ जानि सके,सद्गुरू महिमा बखान।
ता हित कहै ललचै "प्यारी",किजौ क्षमा मूढमति जान ।।

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