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मेरे तो गिरधर गोपाल
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सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुम्ब धन धाम,
हो सचेत बलदेव नींद से, जप ईश्वर का नाम।
मनुष्य तन फिर फिर नहिं होई,
किया शुभ कर्म नहीं कोई,
उम्र सब गफलत में खोई।

अब आज से भगवान के होकर रहो। कोई क्या कर रहा है, भगवान् जानें। हमें मतलब नहीं है। सब संसार नाराज हो जाय तो परवाह नहीं, पर भगवान् मेरे हैं- इस बात को छोड़ो मत। मीराबाई को जँच गयी कि अब मैं भगवान् से दूर होकर नहीं रह सकती- ‘मिल बिछुड़न मत कीजै’ तो उनका डेढ़-दो मन का थैला शरीर भी नहीं मिला, भगवान में समा गया। एक ठाकुर जी के सिवाय किसी से कोई मतलब नहीं है।

अंतहुँ तोहिं तजैंगे पामर! तू न तजै अबही ते।

अन्त में तुझे सब छोड़ देंगे, कोई तुम्हारा नहीं रहेगा तो फिर पहले से ही छोड़ दे।
साधु विचारकर भली समझया, दिवी जगत को पूठ।
पीछे देखी बिगड़ती, पहले बैठा रूठ।

पीछे तो सब बिगड़ेगी ही, फिर अपना काम बिगाड़कर बात बिगड़े तो क्या लाभ? अपने तो अभी-अभी भगवान के हो जाओ। तुम तुम्हारे, हम हमारे। हमारा कोई नहीं, हम किसी के नहीं, केवल भगवान हमारे हैं, हम भगवान के हैं। भगवान् के चरणों की शरण होकर मस्त हो जाओ। कौन राजी है, कौन नाराज; कौन मेरा है, कौन पराया, इसकी परवाह मत करो। वे निन्दा करें या प्रशंसा करें; तिरस्कार करें या सत्कार करें, उनकी मरजी। हमें निन्दा-प्रशंसा, तिरस्कार-सत्कार से कोई मतलब नहीं। सब राजी हो जायँ तो हमें क्या मतलब और सब नाराज हो जायँ तो हमें क्या मतलब?

केवल एक भगवान मेरे हैं- इससे बढ़कर न यज्ञ है, न तप है, न दान है, न तीर्थ है, न विद्या है, न कोई बढ़िया बात है। इसलिये भगवान् को अपना मानते हुए हरदम प्रसन्न रहो। न जीने की इच्छा हो, न मरने की इच्छा हो। न जाने की इच्छा हो, न रहने की इच्छा हो। एक भगवान् से मतलब हो। एक भगवान् के सिवाय मेरा और कोई है ही नहीं। अनन्त ब्रह्माण्डों में केश जितनी अथवा तिनके जितनी चीज भी अपनी नहीं है। हमारा कुछ है ही नहीं, हमारा कुछ था ही नहीं, हमारा कुछ होगा ही नहीं, हमारा कुछ हो सकता ही नहीं। इसलिये एक भगवान् को अपना मान लो तो निहाल हो जाओगे। भगवान् के सिवाय किसी से स्वप्न में भी मतलब नहीं। किसी की गुलामी करने की जरूरत नहीं। हमें किसी से क्या लेना है और क्या देना है। हमारे जो सम्बन्धी हैं, उनका कितने दिन का साथ है। ‘सपना-सा हो जावसी, सुत कुटुम्ब धन धाम’! स्वप्न तो याद रहता है, पर उनकी याद भी नहीं रहेगी। जैसे स्वप्न को नापसन्द कर देते हो तो उसको भूल जाते हो, ऐसे ही संसार को नापसंद कर दो तो उसको भूल जाओगे। संसार में यह आदमी ठीक है, यह बेठीक है; ऐसा हो जाय, ऐसा नहीं हो- यह केवल मोह है। मोह सम्पूर्ण व्याधियों का मूल है- ‘मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला’[1]ठीक हो या बेठीक, हमें क्या मतलब? दूसरे ही हमारी गरज करेंगे, हमें किसी की क्या गरज? संसार के आदमियों से हमें क्या मतलब? बस, एक ही बात याद रखो- ‘मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरों न कोई’।
(साभार- स्वामी रामसुखदास जी, क्रमश:)

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