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रासलीला रहस्य
भाग- 10

‘वन की शोभा देख ली अब बच्चों और बछड़ों का भी ध्यान करो। धर्म के अनुकूल मोक्ष के खुले हुए द्वार अपने सगे-सम्बन्धियों की सेवा छोड़कर वन मे दर-दर भटकना स्त्रियों के लिये अनुचित है। स्त्री को अपने पति की ही सेवा करनी चाहिये, वह कैसा भी क्यों न हो। यही सनातन धर्म है। इसी के अनुसार तुम्हें चलना चाहिये। मैं जानता हूँ कि तुम सब मुझसे प्रेम करती हो परन्तु प्रेम में शारीरिक संनिधि आवश्यक नहीं है। श्रवण, स्मरण, दर्शन और ध्यान से संनिध्य की अपेक्षा अधिक प्रेम बढ़ता है। जाओ, तुम सनातन सदाचार का पालन करो। इधर-उधर मन को मत भटकने दो’

श्रीकृष्ण की यह शिक्षा गोपियों के लिये नहीं, सामान्य नारी जाति के लिये है। गोपियों का अधिकार विशेष था और उसको प्रकट करने के लिये ही भगवान श्रीकृष्ण ने ऐसे वचन कहे थे। उन्हें सुनकर गोपियों की क्या दशा हुई और उनके उत्तर में उन्होंने श्रीकृष्ण से क्या प्रार्थना की,वे श्रीकृष्ण को मनुष्य नहीं मानती थीं, उनके पूर्णब्रह्म सनातन स्वरूप को भलीभाँति जानती थीं और यह जानकर ही उनसे प्रेम करती थीं। जिनके हृदय में भगवान के परमतत्त्व का वैसा अनुपम ज्ञान और भगवान के प्रति वैसा महान अनन्य अनुराग है और सचाई के साथ जिनकी वाणी में वैसे उद्गार है, वे ही इस प्रसँग के सुनने पढ़ने के विशेष अधिकारवान हैं।

गोपियों की प्रार्थना ये यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वे श्रीकृष्ण को अन्तर्यामी, योगेश्वरेश्वर परमात्मा के रूप में पहचानती थीं और जैसे दूसरे लोग गुरु, सखा या माता-पिता के रूप में श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं वैसे ही वे पति के रूप में श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं जो शास्त्रों में मधुर भाव के उज्ज्वल परम रस के नाम से कहा गया है।
(साभार श्री राधामाधव चिंतन से)

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