एक बार तुम आ जाते

हे श्यामसुंदर! हे जगदीश्वर!! हे मनमोहन! हे परमेश्वर!!
स्वीकार कभी कर पाओगे, क्या मेरे विकल-निवेदन को?
बसंत कभी दे पाओगे फिर, क्या मेरे हृदयाआँगन को?
क्या तृप्त कभी कर पाओगे, जो प्यास लगी इन नैनन को?
सरबस ही दे डालूँगी, फिर से तेरे मधुर-मधुर उस दर्शन को.
विरह-वेदना थकी मेरी, अब गीत तेरे गाते-गाते
सूख गए हैं सब सपने इन पलकों तक आते आते
माना तुमको जाना ही था ,लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
गुजरी रात अमावस की जब पूनम आने वाली थी
मुख की आभा जब मेरे तन मन पर छाने वाली थी
कुछ देर अगर रुक जाते तो सारांश नेह का पा जाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
सिन्दूर लगा का लगा रह गया शृंगार किया का किया रह गया
मेरे अनुनय और विनय का व्यवहार धरा का धरा रह गया
इक नज़र देख लेते मुझको तो मुझ पर नयन ठहर जाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
संबंध निभाए मैंने पर कोई कमी रही होगी
जो पायी थी सानिध्य तेरा वो प्यासी जमीं रही होगी
तुम गए छोड़ कर मुझ को पर नयनो में नहीं रही होगी
मैं तुमसे से अलग रहूँ कैसे जो मुझ से दूर न रह पाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
मैं आज सोचती हूँ शायद की मेरा प्यार अधूरा है
मेरी तृष्णा से निर्मित मेरा संसार अधूरा है
तुम ही तो थे दर्पण मेरे तुम ही तो मुझे सजाते थे
बिना तुम्हारे अब मेरा षोडस शृंगार अधूरा है
काश मेरे श्यामसुंदर मेरी कुछ भूलों को बिसरा पाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
प्रत्येक प्रहर इस रैना का इस विरह गीत को गायेगा
हर पल मधुयामिनी की बैरन स्मृतियाँ सज़ा कर लाएगा
कैसे मैं खुद को बहलाऊँ कैसे मैं मन को समझाऊँ
यदि कक्ष चूड़ियों के टूटन की कथा कभी दोहराएगा
प्रस्थान भाग्य था पर फिर भी अधरों से अधर छू कर जाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
उस प्रथम मिलन की मधुस्मृति मुझ को कैसे सोने देगी
और तुम्हारे हाथों की वो छुअन नहीं रोने देगी
तेरे स्मृति की हर सिलवट से है महक तुम्हारी ही आती
तुम और किसी के हो जाओ ये मुझे नहीं होने देगी
मन की इतनी सी थी इच्छा तुम बस मेरे हो कर जाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
हर रात नेह के साथ मुझे स्पर्श तुम्हारा मिलता था
और प्रेम से परिपूर्ण संसर्ग तुम्हारा मिलता था
नई भोर के साथ सदा उत्कर्ष हमारा खिलता था
एक ठिठोली खिलती थी और हर्ष हमारा खिलता था
इक बार मुझे चलते चलते आलिंगनबद्ध ही कर जाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझसे कह कर जाते
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
इस विरह वेदना का कैसे आघात सहूंगी इस मन पे
जाते जाते तुम छोड़ गए वृद्धावस्था इस यौवन पे
निर्जीव देह रह गई मात्र थे प्राण वे ही तो इस तन के
जाना ही था गर तुमको तो श्वासों का ऋण दे कर जाते
माना तुमको जाना ही था लेकिन मुझ से कह कर जाते
लेकिन मुझ से कह कर जाते......बस मुझ से कह कर जाते......
हे श्यामसुंदर! तनिक इक बार और तुम आ जाते
बस इक बार और तुम आ जाते
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