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भाग- 5

श्रीकृष्ण का एक एक अंग सम्पूर्ण श्रीकृष्ण है श्रीकृष्ण का मुखमण्डल जैसे पूर्ण श्रीकृष्ण है, वैसे ही श्रीकृष्ण का पदनख भी पूर्ण श्रीकृष्ण है। श्रीकृष्ण की सभी इन्द्रियों से सभी काम हो सकते हैं। उनके कान देख सकते हैं, उनकी आँखें सुन सकती हैं, उनकी नाक स्पर्श कर सकती है, उनकी रसना सूँघ सकती है, उनकी त्वचा स्वाद ले सकती है। वे हाथों से देख सकते हैं, आँखों से चल सकते हैं। श्रीकृष्ण का सब कुछ श्रीकृष्ण होने के कारण वह सर्वथा पूर्णतम हैं।इसी से उनकी रूपमाधुरी नित्यवर्द्धनशील, नित्य नवीन सौन्दर्यमयी है। उसमें ऐसा चमत्कार है कि वह स्वयं अपने को ही आकर्षित कर लेते हैं फिर उनके सौन्दर्य माधुर्य से गौ हरिण और वृक्ष, बेल पुलकित हो जायँ इसमें तो कहना ही क्या है।

इसलिये उससे प्राकृत पांचभौतिक शरीरों वाले स्त्री-पुरुषों के रमण या मैथुन की कल्पना भी नहीं हो सकती। इसीलिये भगवान को उपनिषद् में ‘अखण्ड ब्रह्मचारी’ बतलाया गया है और इसी से भागवत में उनके लिये ‘अवरुद्ध सौरत’ आदि शब्द आये हैं।
फिर भी कोई शंका करे कि उनके सोलह हजार एक सौ साठ रानियों के इतने पुत्र कैसे हुए तो इसका सीधा उत्तर यही है कि यह सारी भागवती सृष्टि थी, भगवान के संकल्प से हुई थी। भगवान के शरीर में जो रक्त, मांस आदि दिखलायी पड़ते हैं, वह तो भगवान की योगमाया का चमत्कार है। इस विवेचन से भी यही सिद्ध होता है कि गोपियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण का जो रमण हुआ, वह सर्वथा दिव्य भगवत्-राज्य की लीला है, लौकिक काम-क्रीडा नहीं।
(साभार श्री राधामाधव चिंतन से)

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