वैष्णव

-- वह होता है वैष्णव....--

वैष्णव यह नहीं समझता कि, "मुझे भगवान कृष्ण से मेरे पिता के लिए, मेरी माता के लिए प्रार्थना करनी है ।" नहीं ।

वैष्णव प्रार्थना करने के लिए तत्पर रहता है... "पर-दुख-दुखी" । वह पतित बद्ध जीवों को दुखी देखकर सदैव दुखी रहता है । अन्यथा वैष्णव को व्यक्तिगत रूप से कोई दुःख नहीं होता ।

नैवोद्विजे पर दुरत्यया-वैतारण्यास
त्वद-वीर्य-गायन-महामृत-मग्न-चित्तः ।
शोचे ततो विमुख-चेतस इंद्रियार्थः-
माया-सुखाय भरम उद्वहतो विमुढान ॥ (भा ७.९.४३)

वैष्णव संसार के सभी धूर्तों के लिए दुखी होता है । अन्यथा उसके लिए दुःख का कोई कारण नहीं है ।वह कहीं भी बैठ सकता है; वह कहीं भी सो सकता है; वह कुछ भी खा सकता है; उसे किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती ।
वह भगवान कृष्ण के जैसे, यथार्थतः नहीं, पर एक वैष्णव केवल भगवान कृष्ण पर निर्भर रहते हुए आत्म-निर्भर होता है । यह होता है वैष्णव ।
तो वह किसी भी चीज़ के लिए खेद या शोक व्यक्त नहीं करता । वह सर्वदा भगवान की सेवा में संतुष्ट रहता है, परन्तु अज्ञानता के कारण कष्ट पा रहे बद्ध जीवों के लिए सदा दुखी रहता है ।

- श्रील प्रभुपाद प्रवचन, मायापुर, १० फरवरी १९७६😭😭

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला