खाकी बाबा प्रिया अली
श्री खाकी बाबा सरकार वस्तुतः थे तो 'प्रिया अली ' पर कहलाते थे खाकी बाबा, पूज्य बाबा के इस खेल की सदा ही जय हो | इस खेल पर विश्व का सम्पूर्ण सत्य , यथार्थ बलिहार | यह खेल होता है सर्वथा आत्माराम स्थिति के लिए ,जिससे वे अपने जिवानाराध्य की एकान्तिक रसमयी सेवा - चर्या क अगार अपार सिन्धु की लहरों पर लहराते रहे | उनके आंतरिक स्वरुप "प्रिया अली " पर , खाकी बाबा नाम वाला कपटआवरण उनका रक्षा कवच था | इस रक्षा कवच के कारन लोगो को अनुमान नहीं हो पाया की पूज्य बाबा का आंतरिक जीवन कितना अधिक रस लीला लवलीन रहा करता था | पर एक न एक दिन यह भेद खुलना ही था भीतर होने वाली रासलीला ने रक्षा कवच को छीन करते हुए अपनी एक जहल बहार दिखला ही दी | प्रिया अली ने लीला राज्य में अन्य सहचरियो का श्रृंगार किया और सहचरियो ने प्रिया अली का | अभी पेरो में महावर लगाना समाप्त ही हुआ था की आचानक किसी के टोक देने पर पूज्य बाबा बहिर्मुख हो गए | बाबा के पावन चरणों पर महावर लगा था ,और लगा था बहुत कलात्मक रीती से| उन्होंने उसे पोछना चाहा ,पर वह क्या लोकिक महावर था ? लगभग १५ दिन बाद रात में महावर अपने आप गायब हो गया |
ऐसे पूज्य सद्गुरु देव के सत शिष्य थे पूज्य श्री नारायण दास जी भक्त माली मामा जी महाराज |
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