जय निताई 9

🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 9⃣
                   तीर्थ भ्रमण

               🌿श्री निताई चांद स्वानुभावानन्द में निर्भय हो मस्त गति से उस सन्यासी के साथ वक्रेश्वर तीर्थ में पहुंचे। वक्रेश्वर तीर्थ वीरभूम जिला में ही है जो गुप्तकाशी नाम से विख्यात है। अष्टावक्र ऋषि ने यहां तपस्या की थी। मंदिर के प्रांगण में श्वेत गंगा बहती है। वहां अनेक पुष्करिणी विद्यमान है। यहां अष्टावक्र ऋषि तथा श्री वक्रनाथ महादेव विराजमान है। यहां समस्त दर्शनीय स्थानों के दर्शन कर श्री निताई चांद फिर अकेले ही तीर्थ भ्रमण में निकल पड़े। वह सन्यासी महोदय कहां गए, कहां न गए -इस बात का कुछ भी उल्लेख नहीं मिलता।
      
       प्रथम चलिला प्रभु तीर्थ वक्रेश्वर।
       तबे वैद्यनाथ -वन गेला एवेश्वर।।

श्री वक्रेश्वर दर्शन के बाद श्री निताई चांद अकेले ही वैद्यनाथ वन में पहुंचे। वहां से गया, काशी, प्रयाग पहुंचे वहां माघ मास का नियम पूर्वक स्नान किया। इसके बाद वे अपने पूर्व जन्म स्थान मथुरा में आये। विश्राम घाट पर यमुना में केली कर अतीव हर्ष प्राप्त किया। श्री गिरिराज दर्शन कर श्री वृंदावन में पधारे और द्वादश वनों में जाकर दर्शन किए। जिस समय गोकुल में श्री नंद भवन में पधारे तो अधीर हो उठे। जोर- जोर से रोने लगे। इनकी यह प्रेमावस्था देखकर गोकुलवासी चमत्कृत हो उठे। किंतु कोई भी इनके वास्तव स्वरूप को न जान सका। वहां से हस्तिनापुर पहुंचे । वहां श्रीबलराम -कीर्ति देखकर "हलधर ! त्राहिमाम, पाहिमाम" कहकर नमस्कार किया और वहां से द्वारिका पुरी और समुद्र- स्नान कर परम आनंद प्राप्त किया।
                    🌿वहां से श्री कपिल मुनि के आश्रम सिद्धपुर आए। वहां से मत्स्य तीर्थ आकर श्रीप्रभु ने महोत्सव कर अन्न दान किया। वहां से आप शिवकांची विष्णु कांची पहुंचे । वहां से श्रीनिताई चांद कुरुक्षेत्र या समन्तपंचक  तीर्थ,  विंदु सरोवर प्रभास, सुदर्शन तीर्थ, (जो सोमनाथ के ही निकट वर्तमान है)तथा त्रितकूप महातीर्थ में पहुंचे। वहां से प्रतिस्रोता- सरस्वती तीर्थ पहुंचे जो कुरुक्षेत्र के ही निकट है। उसके बाद नैमिषारण्य पधारे जहां साठ हजार ऋषि निवास करते थे। श्री वेदव्यास जी ने यहां ही रहकर प्रायः समस्त पुराणों की रचना की थी ।
                  🌿स्वयंभू मनु एवं शतरूपा की जहां समाधि है। श्री रामचंद्र भगवान ने यहां ही अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया था। यहां तीन तीर्थ  विद्यमान है।  नैमिषारण्य हत्याहरण कुण्ड तथा मिश्रिक तीर्थ (देवताओं का श्मशान क्षेत्र) इन सब स्थानों को देख श्री निताई चांद श्री राम जन्मभूमि अयोध्या में पधारे। पुरी के दर्शन कर प्रभु भावाविष्ट होकर बहुत जोर से रोए। वहां से गुहक राज की राजधानी में पहुंचे । उसकी श्री राघवेंद्र प्रीति का स्मरण कर प्रभु तीन दिन तक आनंद मूर्छा अवस्था में रह आये।  श्री रामचंद्र भगवान जिस -जिस वन स्थान पर पधारे थे , उन सब स्थानों का दर्शन किया। फिर सरयू कोशिकी नदी में स्नान कर श्रीनिताई चांद पावन स्थान पोलस्थ आश्रम में पधारे, जो गंडकी नदी के उद्गम स्थान के अति निकट और मध्य तिब्बत के दक्षिण प्रांत हिमालय के सप्त गण्डकी की रेंज पर स्थित है। गोमती, गण्डकी, शोंण तीर्थ में प्रभु ने स्नान किया

क्रमशः....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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