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श्रीकृष्ण चरित्र की उज्जवलता-4

भगवान की सब लीलाओं का अनुकरण नहीं हो सकता-
भगवान की अवतार-लीलाओं के सम्बन्ध में कुछ भी संदेह न करके ऐसा मानना चाहिये कि वे भगवान हैं, सर्वसमर्थ हैं, सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र हैं,चाहे जैसे, चाहे जो चाहे जब कर सकते हैं।उनके लिये सभी कुछ ठीक है पर हमें अनुकरण उन्हीं बातों का करना चाहिये, जिनके लिये उनका तथा उनकी ही वाणीरूप शास्त्रों का आदेश हो और सच बात तो यह है कि भगवान की सारी लीलाओं का अनुकरण किया भी नहीं जा सकता।

भगवान की लीलाएँ प्रधानतया तीन प्रकार की होती हैं -
1. लोकसंग्रह या लोकशिक्षा के लिये की जाने वाली आदर्श लीला
2. अद्भुत, असम्भव जान पड़ने वाली ऐश्वर्यमयी लीला और
3. अन्तरंग प्रेमी भक्तों के साथ की जाने वाली प्रेममयी लीला।

1-माता-पिता की भक्ति, गुरु की भक्ति, ब्राह्मण-भक्ति, सदाचार, देवपूजन, दीनरक्षण, इन्द्रियनिग्रह, ध्यान-पूजन, सत्य व्यवहार, निष्कामभाव, अनासक्ति, समत्व, नित्य आनन्द में स्थिति आदि यथायोग्य अनुकरण करने योग्य आदर्श लीलाएँ हैं। इनका अनुकरण अपने-अपने अधिकार के अनुसार किया जा सकता है और करनी ही चाहिये। भगवान का आदेश भी है ऐसा करने के लिये।

2-अग्नि पीना, वरुणलोक में जाना, अँगुली पर सात दिनों तक पर्वत उठाये रखना, कई प्रकार से अपने विराट् रूप के दर्शन कराना, अघासुर-शिशुपाल आदि के मरने पर उनकी आत्मज्योति को अपने में विलीन कर लेना, हजारों-लाखों मनुष्यों के साथ विभिन्न भावों से एक ही साथ मिलना, हजारों रानियों के महलों में एक साथ रहना, दो जगह एक ही साथ एक ही समय आतिथ्य स्वीकार करना, सूर्य को ढक देना, असख्ंय गोवत्स, गोपबालक तथा उनकी प्रत्येक वस्तु के रूप में स्वयं बन जाना, ब्रह्माजी को सबमें भगवत्स्वरूप के तथा महान ऐश्वर्य के दर्शन कराना, अक्रूर को जल में दर्शन कराना, मारकर असुरों का उद्धार करना आदि ऐश्वर्यमयी लीलाएँ हैं। इनका अनुकरण साधारण मनुष्य के द्वारा सर्वथा असम्भव है।

3-गोपियों के घरों से माखन चुराकर खाना, चीरहरण, रासलीला और निकुन्जलीला आदि अन्तरंग मधुर प्रेमीलीलाएँ हैं, जिन्हें भगवान अपने आत्मस्वरूप पार्षदों के तथा प्रेमियों के साथ अनर्गल अमर्यादरूप में श्रुतिसेतु का भंग करके अपने-आप में ही किया करते हैं।

"रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभि-
र्यथार्भकः स्वप्रतिबिम्बविभ्रमः"
‘रमानाथ भगवान ने व्रजसुन्दरियों के साथ वैसे ही खेल किया जैसे बालक अपनी छाया के साथ करता है'
इन मधुर लीलाओं का अनुकरण कदापि नहीं करना चाहिये। जो मूढ़ इनका अनुकरण करने जाता है, वह शास्त्र और धर्म से च्युत होकर घोर नरक का अधिकारी होता है।

वस्तुतः इन तीनों प्रकार की लीलाओं में केवल पहली लीला ही अनुकरण करने योग्य होती है। पिछले दोनों प्रकार की लीलाएँ तो श्रवण, कीर्तन, मनन और ध्यान करके भगवान के प्रति भक्ति तथा प्रेम प्राप्त करने के लिये है। शुद्ध मन से श्रद्धा-भक्तिपूर्वक भगवान की ऐश्वर्य और माधुर्य से भरी लीलाओं का चिन्तन करना चाहिये और आदर्श लोकशिक्षामयी लीलाओं को अपने जीवन में उतारना चाहिये। शेष भगवत्कृपा।
(आभार श्री राधामाधव चिंतन से)

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