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भाग- 6

उन गोपियों की साधना पूर्ण हो चुकी है। भगवान ने अगली रात्रियों में उनके साथ विहार करने का प्रेम संकल्प कर लिया है। इसी के साथ उन गोपियों को भी जो नित्यसिद्धा हैं, जो लोक दृष्टि में विवाहिता भी हैं, इन्हीं रात्रियों में दिव्य-लीला में सम्मिलित करना है। वे अगली रात्रियाँ कौन-सी हैं यह बात भगवान की दृष्टि के सामने है। उन्होंने शारदीय रात्रियों को देखा।

‘भगवान ने देखा’-इसका अर्थ सामान्य नहीं, विशेष है। जैसे सृष्टि के प्रारम्भ में ‘स ऐक्षत एकोऽहं बहु स्याम।’-भगवान के इस ईक्षण से जगत् की उत्पत्ति होती है, वैसे ही रास के प्रारम्भ में भगवान के प्रेम-वीक्षण से शरत्काल की दिव्य रात्रियों की सृष्टि होती है।

मल्लिका-पुष्प, चन्द्रिका आदि समस्त उद्दीपन सामग्री भगवान के द्वारा वीक्षित है अर्थात् लौकिक नहीं, अलौकिक-अप्राकृत है। गोपियों ने अपना मन श्रीकृष्ण के मन में मिला दिया था। उनके पास स्वयं मन न था। अब प्रेम-दान करने वाले श्रीकृष्ण ने विहार के लिये नवीन मनकी-दिव्य मनकी सृष्टि की। योगेश्वरेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की यही योगमाया है, जो रासलीला के लिये दिव्य स्थल, दिव्य सामग्री एंव दिव्य मनका निर्माण किया करती है। इतना होने पर भगवान की बाँसुरी बजती है।

भगवान की बाँसुरी जड़ को चेतन, चेतन को जड़, चल को अचल और अचल को चल, विक्षिप्त को समाधिस्थ और समाधिस्थ को विक्षिप्त बनाती ही रहती है।

भगवान का प्रेमदान प्राप्त करके गोपियाँ निस्संकल्प, निश्चिन्त होकर घर के काम में लगी हुई थीं। कोई गुरुजनों की सेवा-शुश्रूषा ‘धर्म’ के काम मे लगी हुई थी, कोई गो-दोहन आदि ‘अर्थ’ के काम में लगी हुई थी, कोई साज-श्रृंगार आदि ‘काम’ के साधन मे व्यस्त थी, कोई पूजा-पाठ आदि ‘मोक्ष’-साधन में लगी हुई थी। सब लगी हुई थीं अपने-अपने काम में, परंतु वास्तव में उनमें से एक भी पदार्थ वे चाहती न थीं। यही उनकी विशेषता थी और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि वंशीध्वनि सुनते ही कर्म की पूर्णता पर उनका ध्यान नहीं गया।
(साभार श्री राधामाघव से)

क्रमश

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