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अखंड ब्रह्मचर्य व रासलीला- 6

'आप सब वनश्री देखने आयीं थीं तो यह भी हो गया। सचमुच आज पूर्ण राशि की ज्योत्स्ना से रंजित कालिन्दी पुलिन एवं वृन्दावन की शोभा देखने ही योग्य है किंतु यह रात्रि का समय है। इस समय स्त्रियों को वन में देर तक नहीं रहना चाहिये। अतः अब लौट जाओ'

इतनी औपचारिक बात की जायगी किसी को आशंका नहीं थी। सबके मुख म्लान हो गये। सबके नेत्र टपकने लगे किंतु अभी तो अन्तिम वज्रपात शेष था।

वंशीधर कह गये- 'आप सब मेरे प्रेम से विवश आयी हो, यह उचित ही है। सब प्राणी मुझसे प्रेम करते हैं किंतु प्रेम परिशुद्ध होता है। किसी स्त्री को परपुरुष के स्पर्श की कामना नहीं करनी चाहिये। यह कामना क्लेश, अयश तथा अधोगति का कारण होती है। स्त्री को पति तथा पति के स्वजनों की सेवा करनी चाहिये। आप सबके पति, पिता, भाई आपको घर न पाकर बहुत व्याकुल होंगे।अभी गायें दुहनी होंगी। स्वजनों को भोजन कराना होगा। स्त्री का परम धर्म पति सेवा है। अतः आप सब अब शीघ्र लौटो और स्वजनों की तथा गायों की सेवा करो। गो दोहन सम्पन्न कराओ। घर के लोगों को भोजन कराओ। मेरा प्रेम मन में रहने दो, इसी से आपका परम मंगल होगा'

यह उपदेश कोई वृद्ध मुनि देता तो कुछ बात भी थी। ये सौन्दर्य सिन्धु रसिकशेखर इस एकान्त में स्वयं मुरली के सम्मोहन स्वर में सबका आह्वान करके ऐसा उपदेश देने लगे थे।

सबकी सब किशोरियों के कमल मुख शुष्क हो गये। नेत्रों से अञ्जन-रञ्जित अश्रुधारा चलने लगी। अजस्त्र अश्रुधारा कपोल, वक्ष सब आर्द्र होने लगे। पदों के सुचारु नखों से वे भूमि कुरेदने लगीं। एक ही भाव- 'भूमि फटती और हम भी वैसे समा जातीं पृथ्वी में जैसे कभी त्रेता में भूमि-सुता सीता समा गयी थीं'

मुझे लगा कि इनके श्वेत पड़ते जाते शरीर अब संज्ञा शून्य होकर पृथ्वी पर गिरने ही वाले हैं किंतु किसी प्रकार इन्होंने अपने को सम्हाल लिया। एक इनमें किञ्चित बड़ी लगीं वय में। पीछे पता लगा, इनका नाम चन्द्रावली है। अवश्य यह कुछ प्रगल्भा है इसीलिये बोल सकीं। इसके वचन ही सबके लिए सुधा श्रोत हो गये-

'श्यामसुन्दर इतने निष्करुण मत बनो। ऐसे निर्मम वचन तुम्हें नहीं कहने चाहिये। हम संसार के समस्त सम्बन्ध त्यागकर, सब छोड़कर तुम्हारे समीप आयी हैं। परम पुरुष परमात्मा तो अपने अनन्याश्रितों को अपना लेते हैं। तुम हमें त्यागो मत,स्वीकार करो'-अत्यन्त आर्त करूण स्वर इसका। पाषाण भी पिघल जाय ऐसी वाणी।
(साभार-नन्दनन्दन से)
क्रमश:

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