श्रीकृष्ण चरित की उज्जवलता
श्री कृष्ण चरित्र की उज्जवलता-1
यह सत्य है कि रासलीला आदि में श्रृंगार का खुला वर्णन है और नायक नायिकाओं की भाँति चरित्र चित्रण है परंतु उसके पढ़ने से काम-वासना जाग्रत् होती है, यह बात ठीक नहीं। रासपंचाध्यायी का पाठ तो हृद्रोग-काम का नाश करने वाला ही माना गया है और है भी यही बात। हाँ, उनकी बात दूसरी है जो भगवद्भावहीन हैं और उनके लिये रासलीला का पढ़ना उचित भी नहीं है। यही तो अधिकारिभेद का रहस्य है। इस श्रृंगार और नायक-नायिका की लीला में कुछ भी दोष नहीं है।
स्वयं समग्र ब्रह्म, पुरुषोत्तम, सर्वान्तर्यामी, सर्वलोकमहेश्वर, सर्वात्मा, सर्वाधिपति, अखिल विश्वब्रह्माण्ड के एकमात्र आधार, सम्पूर्ण विश्वसमष्टि को अपने एक अंशमात्र से धारण करने वाले, सच्चिदानन्दविग्रह श्रीभगवान तो गोपीनाथ स्वरूप से इस रस के नायक हैं और उपर्युक्त ह्लादिनी शक्ति की घनीभूत मूर्तियाँ-तत्त्वतः अभिन्नरूपा श्रीगोपीजन नायिका हैं।
इनकी वह लीला भी सच्चिदानन्दमयी, अत्यन्त विलक्षण और हम लोगों के प्राकृत मन-बुद्धि के सर्वथा अगोचर, दिव्य और अप्राकृत है। परंतु यदि थोड़ी देर के लिये यह भी मान लें कि इस लीला में मिलन-विलासादि रूप श्रंगार का ही रसास्वादन हुआ था, तो भी इसमें तत्त्वतः कोई दोष नहीं आता। अत्यन्त मधुर मिश्री की कड़वी तूँबी के शकल की कोई आकृति गढ़ी जाय, जो देखने में ठीक तूँबी-सी मालूम होती हो, तो इससे वह तूँबी क्या कड़वी होती है? अथवा क्या उसमें मिश्री के स्वभाव-गुण का अभाव हो जाता है? बल्कि वह और भी लीलाचमत्कार की बात होती है। लोग उसे खारी तूँबी समझते हैं, होती है वह मीठी मिश्री।
इसी प्रकार सच्चिदानन्दघनमूर्ति भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अभिन्नस्वरूपा ह्लादिनी शक्ति की घनीभूत मूर्ति श्रीगोपीजनों की कोई भी लीला कैसी भी क्यों न हो, उसमें लौकिक काम का कड़वा आस्वादन है ही नहीं, वहाँ तो नित्य दिव्य सच्चिदानन्द रस है। जहाँ मलिना माया ही नहीं है, वहाँ माया से उत्पन्न काम की कल्पना कैसे की जा सकती है? काम का नाश तो इससे बहुत नीचे स्तर में ही हो जाता है।
हाँ, इसकी कोई नकल करने जाता है तो वह अवश्य पाप करता है। श्रीभगवान की नकल कोई नहीं कर सकता। मायिक पदार्थों के द्वारा अमायिक का अनुकरण या अभिनय नहीं हो सकता। कड़वी तूँबी के फल से चाहे जैसी मिठाई बनायी जाय और देखने में वह चाहे जितनी भी सुन्दर हो, उसका कड़वापन नहीं जा सकता। इसीलिये जिन्होंने श्रीकृष्ण की रासलीला की नकल करके नायक-नायिका का रसास्वादन करना चाहा है या जो चाहते हैं, वे तो डूबे हैं और डूबेंगे ही। श्रीकृष्ण का अनुकरण तो सब बातों में केवल श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं।
(आभार श्री राधामाघव चिंतन से)
क्रमश:
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