सीहा जी

"सन्त परिचय" पोस्ट-9
                                 "भक्त श्री सीहा जी"
           भक्त श्री सीहाजी बड़े ही नामनिष्ठ सन्त थे और सदा नाम संकीर्तन करते रहते थे। आपका संकीर्तन इतना रसमय होता था कि स्वयं भगवान भी विभिन्न वेश बनाकर उसमें आनन्द लेने पहुँच जाया करते थे।
          आप स्वयं तो कीर्तन करते ही थे, गाँव के बालकों को भी बुलाकर कीर्तन कराते थे। बालकों को कीर्तन के अन्त में आप प्रसाद दिया करते थे, अत: वे भी खुशी-खुशी पर्याप्त संख्या में आ जाया करते थे। एक बार ऐसा संयोग बना कि तीन दिन तक आपके पास बाँटने के लिये प्रसाद ही न रहा। इससे आपको बडी चिन्ता हुई, साथ ही दु:ख भी हुआ। आपको इस प्रकार चिन्तित देख चौथे दिन भगवान् स्वयं बालक बनकर आये और सबको उनकी इच्छा के अनुसार इच्छा भर लड्डू वितरित किये और फिर रात्रि में आपसे स्वप्न में कहा कि अब आपको चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है, प्रसाद न रहने पर मैं स्वयं वेश बदलकर प्रसाद बाँटा करूँगा, आप बस कीर्तन कराइये। अब भगवान प्रतिदिन वेश बदलकर आपके कीर्तन में सम्मिलित होने लगे।
                    "जय जय श्री राधे"

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