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🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 7⃣

💐गृह त्याग 💐
        
          🌿   माता श्री पद्मावती तथा श्री हाड़ाई पंडित को तो प्राण  तुल्य थे बाल निताई । एक क्षण के लिए भी दूर खेलने जाने पर माता को युग कालीन विरह व्याप उठता था । बाबरी सी होकर ढूंढ कर घर ले आती। पंडित जी तो कृषि कर्म ,यजमानी आदि को भी छोड़ कर घर बैठे बैठे निताई चांद की मुख छटा देखते रहते ।
       🌹  श्री निताई चांद 12 वर्ष के हो चुके थे और अपने लीला का विस्तार करना चाहते थे और घर परिजनों को त्याग कर अपने लीला संगी सज्जनों की खोज करना चाहते थे परंतु माता पिता का अतिशय स्नेह अनुभव कर उन्हें दुखी भी नहीं देखना चाहते थे। लीलाधारी ने अपनी लीला का स्वयं ही समाधान किया । 
        🌿    एक दिन हाड़ाई पंडित कृषि कार्य को देखने के लिए जैसे ही अपने भवन के दरवाजे से बाहर आए , सामने  एक वृद्ध सन्यासी को आते देखा। बड़ा तेजस्वी सुशील था वह सन्यासी। श्री पंडित जी ने नमो नारायण कहकर श्रद्धा सहित प्रणाम किया उन्हें । सन्यासी ने शुभ आशीर्वाद दिया। इन्होने कहां से आगमन हुआ? कहां पधार रहे हो? पंडित जी ने अति विनम्र होकर  पूछा
       🌹  सन्यासी महोदय बोले- हमारा क्या ठिकाना ? रमते - राम है तीर्थ भ्रमण को निकले हैं जिस गाँव मे रात्रि पड़ गई उसी में निवास कर प्रातः आगे को चल देते हैं।
          🌿  मेरे अति सौभाग्य है आपके दर्शन पाकर । असीम कृपा मानूंगा यदि मेरी कुटिया पर पधारें और श्री नारायण प्रसाद की भिक्षा ग्रहण कर मेरे परिवार को धन्य करें । पंडित जी ने ऐसी प्रार्थना की । सन्यासी महोदय ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। पंडित जी ने उन्हें आदर पूर्वक भिक्षा कराई और सारी बात उनके साथ श्री कृष्ण कथा करते हुए बिता दी। सवेरे जब सन्यासी महोदय चलने को तैयार हुए तो पंडित जी से बोले मेरी एक दक्षिणा है यदि तुम उसे देना स्वीकार करो।
         🌹 पंडित जी ने कहा - हां हां अवश्य आज्ञा कीजिए । सन्यासी ने कहा - यदि तुम उसे पूरा करने का वचन दो तो कहूं पंडित जी ने कहा- कहिए मैं अवश्य पूरा करूंगा । संन्यासी बोले - पंडित जी ! मैं तीर्थ भ्रमण करना चाहता हूं परंतु मेरे साथ कोई सहायक ब्राह्मण नहीं है । तुम अपने इस बड़े पुत्र नित्यानंद को मेरे साथ भेज दो । मैं इसे प्राणों के समान रखूंगा । सब तीर्थों के दर्शन भी कर आएगा।         🌿    संन्यासी के वचन सुनते ही सरल चित श्री हाड़ाई पंडित व्याकुल हो उठे मानो उसने तो प्राण दक्षिणा मांग ली । ठीक वही दशा आ उपस्थित हुई जैसी महाराज दशरथ जी से श्री विश्वामित्र मुनि द्वारा श्री राम लक्ष्मण जी के मांगने पर हुई थी। धर्म संकट में पड़ गए पंडित जी। पुत्र देते भी नहीं बनता और वचन देकर न देने में धर्म जाता है । अतएव चिंतित होकर पंडित जी श्री निताई चंद्र की माता के निकट आए और सब वृत्तांत कह सुनाया।
          🌹 परमोदार परम पतिव्रता श्री पद्मावती सुन कर पहले तो एकदम सहम गई । फिर बोली- पतिदेव ! जो आपकी इच्छा है मैं उस से सहमत हूं अपने धर्म की रक्षा कीजिए।

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास गिरिराज  नांगिया जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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