15

रासलीला रहस्य
भाग- 15

भेद इतना ही है कि वह लौकिक स्त्री-पुरुषों का ‘काम’-मिलन न था। उसके नायक थे सच्चिदानन्दविग्रह, परात्पर-तत्त्व, पूर्णतम स्वाधीन और निरंकुश स्वेच्छाविहारी गोपीनाथ भगवान नन्दानन्दन एवं नायिकाएँ थीं स्वयी ह्लादिनी शक्ति श्रीराधाजी और उनकी कायव्यूहरूपा, उनकी घनीभूत मूर्तियाँ श्रीगोपीजन। अतएव इनकी यह लीला अप्राकृत थी।

सर्वथा मीठी मिश्री की अत्यन्त कड़ुए इन्द्रायण (तूँबे) जैसी कोई आकृति बना ली जाय, जो देखने में ठीक तूँबे जैसे ही प्रतीत हो, तो इससे असल में वह मिश्री का तूँबा कड़ुआ थोड़े ही हो जाता है। क्या तूँबे के आकार की होने से ही मिश्री के स्वाभाविक गुण मधुरता का अभाव हो जाता है? वह किसी भी आकार में हो सर्वत्र, सर्वदा और सर्वथा सब ओर से मिश्री ही मिश्री है। बल्कि इसमें लीला-चमत्कार की बात अवश्य है। लोग समझते हैं कुड़आ तूँबा और होती है वह मधुर मिश्री।

इसी प्रकार अखिलरसामृतसिन्ध सच्चिदानन्दघनविग्रह भगवान श्रीकृष्ण और उनकी अन्तरंगा अभिन्न-स्वरूपा गोपियों की लीला भी देखने में कैसी ही क्यों न हो, वस्तुतः वह सच्चिदानन्दमयी ही है। उसमें सांसारिक गंदे काम का कड़ुआ स्वाद है ही नहीं। हाँ, यह अवश्य है कि इस लीला की नकल किसी को कभी नहीं करनी चाहिये, करना सम्भव भी नहीं है। मायिक पदार्थों के द्वारा मायातीत भगवान का अनुकरण कोई कैसे कर सकता है? कड़ुए तूँबे को चाहे जैसी सुन्दर मिठाई की आकृति दे दी जाय, उसका कड़ुआपन कभी मिट नहीं सकता। इसलिये जिन मोहग्रस्त मनुष्यों ने श्रीकृष्ण की रास आदि
अन्तरंग-लीलाओं का अनुकरण करके नायक-नायिका का रसास्वादन करना चाहा या चाहते हैं, उनका घोर पतन हुआ है और होगा। श्रीकृष्ण की इन लीलाओं का अनुकरण तो केवल श्रीकृष्ण ही कर सकते हैं। इसीलिये शुकदेवजी ने रासपन्चाध्यायी के अन्त में सबको सावधान करते हुए कह दिया है कि भगवान के उपदेश तो सब मानने चाहिये, परंतु उनके सभी आचरणों का अनुकरण कभी नहीं करना चाहिये।
(साभार श्री राधामाधव चिंतन से)

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला