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रासलीला रहस्य
भाग- 9

यद्यपि गोपियाँ पाप-पुण्य से रहित श्रीभगवान की प्रेम-प्रतिमास्वरूपा थीं तथापि लीला के लिये यह दिखाया गया है कि अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के पास न जा सकने से उनके विरहानल से उनको इतना महान संताप हुआ कि उससे उनके सम्पूर्ण अशुभ का भोग हो गया, उनके समस्त पाप नष्ट हो गये और प्रियतम भगवान के ध्यान से उन्हें इतना आनन्द हुआ कि उससे उनके सारे पुण्यों का फल मिल गया। इस प्रकार पाप-पुण्यों का पूर्ण रूप से अभाव हो जाने से उनकी मुक्ति हो गयी। चाहे किसी भी भाव से हो-काम से, क्रोध से, लोभ से जो भगवान के मंगलमय श्रीविग्रह का चिन्तन करता है, उसके भाव की अपेक्षा न करके वस्तुशक्ति से ही उसका कल्याण हो जाता है।

यह भगवान के श्रीविग्रह की विशेषता है। भाव के द्वारा तो एक प्रस्तरमूर्ति भी परम कल्याण का दान कर सकती है, बिना भाव के ही कल्याणदान भगवद्विग्रह का सहज दान है।
भगवान हैं बड़े लीलामय। जहाँ वे अखिल विश्व के विधाता ब्रह्मा, शिव आदि के भी वन्दनीय, निखिल जीवों के प्रत्यगात्मा हैं, वहीं वे लीलानटवर गोपियों के इशारे पर नाचने वाले भी हैं। उन्हीं की इच्छा से, उन्हीं की प्रेमाहान से, उन्हीं के वंशी-निमन्त्रण से प्रेरित होकर गोपियाँ उनके पास आयीं परंतु उन्होंने ऐसी भावभंगी प्रकट की, ऐसा स्वाँग बनाया, मानो उन्हें गोपियों के आने का कुछ पता ही न हो।

कहीं साधारण जन इसे साधारण बात न समझ लें, इसलिये जन साधारण लोगों के लिये उपदेश और गोपियों का अधिकार भी उन्होंने सबके सामने रख दिया। उन्होंने गोपियों को अपने समक्ष देख कर कहा-‘गोपियो व्रज में कोई विपत्ति तो नहीं आयी, घोर रात्रि में यहाँ आने का कारण क्या है? घर वाले तुम्हें ढूँढ़ते होंगे, तुम्हें अब यहाँ ठहरना नहीं चाहिये।
(साभार श्री राधामाधव चिंतन से)

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