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🌺जय श्री राधे🌺      🌺जय निताई 🌺
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 2⃣

               💐तत्वांश💐

        प्रेमदाता अक्रोध परमानंद परम दयाल मूर्ति श्री निताई चांद के तत्वांश की विस्तृत आलोचना में प्रवृत्त होने से पहले सूत्र रूप में इनके तत्वांश के संबंध में निखिल भक्ति शास्त्र सिद्धांत सार एवम पंचम वेद स्वरूप पुराण शिरोमणि श्रीमद् भागवत के भाष्य स्वरूप श्री चैतन्य चरितामृत ग्रंथ का कथन है --

सर्व अवतारी कृष्ण स्वयं भगवान ।
ताहार द्वितीय देह- श्री बलराम ।।
एकइ स्वरूप - दुइ भिन्न मात्र काय ।
आद्य कायव्यूह- कृष्ण लीलार सहाय ।।
सेइ कृष्ण नवद्वीप श्री चैतन्यचंद्र ।
सेइ बलराम संगे श्री नित्यानंद ।।
श्री चैतन्यचरितामृत 2-5-3-5।।
               व्रजेन्द्रनंदन श्री कृष्ण सर्व -अवतारी हैं। जितने भी भगवदवतार अथवा भगवान के स्वरुप हैं, उनके सब मूल हैं श्री कृष्ण। वे स्वयं भगवान है। स्वयं रूप है। अर्थात स्वयं सिद्ध रूप हैं, वे किसी अन्य रूप की अपेक्षा नहीं रखते।उन्ही स्वयं भगवान श्री कृष्ण का दूसरा देह है -श्रीबलराम। श्रीकृष्ण तथा श्री बलराम मूलतः एक ही तत्व है। केवल दो देहो में प्रकाशित हो रहा है। तत्वत: श्रीबलराम श्रीकृष्ण का ही विलास है। स्वरुप में अभिन्न होते हुए भी किसी विशेष लीला के उद्देश्य से श्री कृष्ण जब अपने को भिन्न आकृति में अर्थात पृथक रंग से पृथक वेशादि में प्रकटित करते हैं। उस स्वरूप को विलास कहा जाता है। श्री कृष्ण श्याम वर्ण है। श्री बलराम श्वेतवर्ण है। श्री कृष्ण पीतांबरधारी हैं श्री बलराम नीलांबरधारी हैं। इस तरह वर्ण और वेशादि में भेद होने के कारण श्री बलराम को श्री कृष्ण का विलास कहा गया है।
                🌿श्री बलराम को श्री कृष्ण का आद्य- कायव्यूह भी कहा गया है। किसी विशेष उद्देश्य को लेकर जब एक देह के अतिरिक्त और एक अथवा अनेक देह प्रकटित होते हैं। तब उनको प्रथम देव का कायव्यूह कहा जाता है। स्वयं रूप अद्वय ज्ञान तत्व व्रजेंद्रनंदन श्री कृष्ण लीलाओं के अनुरोध से अनेक रूपों में अपने को प्रकटित करते हैं। उन समस्त रूपों में श्री बलराम ही सर्वप्रथम रूप है। इसलिए उन्हें आद्य कायव्यूह   कहा गया है और यह रूप है भी सर्वश्रेष्ठ । यह रूप श्री कृष्ण की लीलाओं की सहायता करता है । इसे मूल संकर्षण भी कहा जाता है। मूल संकर्षण श्री बलराम स्वयं रूप से श्री कृष्ण की सेवा संपादन करते हैं और भी 5 रूपों से श्रीकृष्ण की सेवा करते हैं। वह 5 रूप हैं संकर्षण, कारण समुद्रशायी, गर्भोदशायी , क्षीरसमुद्रशायी तथा शेष । छः रूपों से श्री बलराम श्रीकृष्ण की अनंत सेवा संपादन करते हैं ।
 
🌙जय निताई।🌙 💐जय श्री राधे💐

क्रमशः....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी

🎓प्रेरणा : दासाभास डॉ. गिरिराज जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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