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अखंड ब्रह्मचर्य व रासलीला- 5

'वह अभी गोचारण करके लौटा है। व्रजराज के भवन पर ब्यालू करके कहीं बैठा वंशी बजा रहा है। रात्रि में वायु के कारण वंशी ध्वनि वन से आती प्रतीत होती है। इस समय नन्द-भवन भी नहीं जाया जा सकता। कन्हाई की मुरली का स्वर हमारे मन को भी मथित करता है किंतु ऐसे उठ भागना व्यर्थ है। सब सो रहो। प्रभात हो तो कल वन में जाकर उसका वंशीवादन सुनना। हम सब भी चलेंगे'

सब नारियाँ-बालिकाएँ अपने गृहों में भी हैं और वे सब दौड़ी भी आ रही हैं। सब किशोरियाँ हैं, न बालिकाएँ और न तरुणियाँ। यह क्या है मैं कुछ समझ नहीं पाता।

{रासलीला अवतार लीला नहीं है। अवतार लीला के रूप में श्रीकृष्ण नंदगृह में मैया के समीप शैय्या पर ही बने रहे। वे वन में गये ही नहीं रात्रि को। गोपियाँ भी सब पार्थिव देह से अपने घरों में ही रहीं। रासलीला तो दिव्य लीला है दिव्य देहों से हुई। अन्यथा रास के समय श्रीकृष्ण की आयु आठ वर्ष एक मास, बाईस दिन की थी। श्रीराधा इनसे केवल कुछ महीने ही बड़ी है। उनकी सखियों में भी कोई उनसे दो वर्ष से अधिक बड़ी नहीं हैं }

सब सौन्दर्य की साकार देवियाँ,सब दौड़ी आयीं। सब अकेली, एक दूसरी से दूर छिपती आयीं और आकर वन में उस शिलातल के चारों ओर खड़ी हो गयीं। इन सबका यह सलज्ज स्मित शोभित मुख, यह सकटाक्ष निरीक्षण यह स्पष्ट सर्वात्मना समर्पण। इनमें भी जो सबसे आगे है, मैं चाहकर भी इनके चरणों से ऊपर दृष्टि नहीं उठा पाता। ये सहस्त्र-सहस्त्र ज्योत्स्ना झरते चरण नख। ये अकेली भी होतीं तो भी क्या ये नवघनसुन्दर गोपकुमार इनकी उपेक्षा कर पाते? यहाँ तो इनकी ये सहस्त्र-सहस्त्र सखियाँ साथ हैं क्या समझकर देवर्षि ने इन गोपकुमार को अजेय कहा था मेरे लिये?

मैं अपने मनोमन्थन से उबर भी नहीं पाया था कि मुरली का स्वर शान्त हो गया। अधरों से वंशी हटाकर वे मयूर मुकुटी जिस गम्भीर, शान्त अविकृत स्वर में बोले, मेरा शरीर होता तो मैं अवश्य उनके बैठने की शिला पर सिर पटक देता। पराजित भी हुआ ही जाता है किंतु ऐसी पराजय। जैसे मेरे प्रभाव का कोई सीकर भी तो उनको स्पर्श नहीं कर सका था। मैं सन्न सुनता देखता रहा गगन में स्तब्ध बना।

'आप सब महाभागओं का स्वागत' वे ऐसे स्वर में कह रहे थे जैसे कोई सर्वथा अपरिचित हों- 'आप सब इस समय कैसे दौड़ी आयीं? व्रज में कोई विपत्ती तो नहीं है?'

ये कुमारियाँ क्या कहें? इन्होंने सस्मित देखा परस्पर और सिर झुका लिया किंतु वनमाली बोलते ही गये- 'क्या आप सब वनश्री देखने आयीं थीं ?
(साभार-नन्दनन्दन से)

क्रमश:

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