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🌸जय श्री राधे🌸     💐जय निताई 💐
              
         🌙   श्री निताई चाँद🌙

क्रम: 4⃣

उपर्युक्त 4 स्वरूपों को  श्री कृष्ण द्वारका चतुर्व्यूह या प्रथम चतुर्व्यूह कहा जाता है इस चतुर्व्यूह में जो श्री संकर्षण है वही श्री निताई चांद है। मथुरा द्वारका लीला में श्री संकर्षण रूप से एवं नवदीप लीला में श्री निताई चांद रूप से लीला करते हैं ।

श्री बृजेंद्रनंदन श्री कृष्ण की दूसरी विलास मूर्ति है भगवान श्री नारायण । वह श्रीकृष्ण से सर्वथा अभिन्न तत्व है वे चतुर्भुज हैं , शंख, चक्र, गदा पद्म धारण करते हैं । श्री , भू एवं लीला शक्तियों के द्वारा सदा सेवित हैं । लीलारस आस्वादन ही एकमात्र उनका स्वरूपानुबंधि स्वभाव है तथापि भक्तजनों को वह चार प्रकार के की मुक्ति प्रदान कर उनका निस्तार करते हैं । षडेश्वर्य पूर्ण भगवान हैं वे। श्री राम , नृसिंह, वामन आदि जितने भी भगवत स्वरूप हैं उनके अलग-अलग नित्य धाम हैं, नित्य परिकर हैं ,वह समस्त भगवत स्वरूप अपने लीला, नामों एवं परकरों के साथ जिस प्रदेश विशेष में अवस्थान करते हैं उसका नाम है परव्योम।परव्योम के अंतर्गत असंख्य बैकुंठ धाम है ।श्री कृष्ण की विलास मूर्ति भगवान से नारायणी उस पर व्योम की अधिपति हैं।
परव्योमाधिपति भगवान श्री नारायण के चारों ओर उपर्युक्त द्वारका चतुर्व्यूह का एक दूसरा प्रकाश अवस्थान करता है जो द्वारका चतुर्व्यूह का अंश है ।          
   प्रथम तथा दूसरे चतुर्व्यूह में जो संकर्षण नाम के दूसरे  व्यूह हैं वे श्री बलराम के ही प्रकाश विशेष या अंश है । इन्हें महा संकर्षण कहा गया है। इनका स्वरूप तुरीय है अर्थात यह मायातीत हैं। इनका माया के साथ कुछ भी संश्रव संस्कार संस्पर्श नहीं है, शुद्ध सत्वमय विग्रह हैं, चिदघनमूर्ति हैं। यही महा संकर्षण श्रीकृष्ण की इच्छा से चित शक्ति( ह्लादिनी, संधिनी एवं संवित) रूप उपादान के द्वारा ही  गोलोक , मथुरा द्वारिका एवं समस्त पर व्योम स्थित बैकुंठ आदि भगवत धामों को प्रकटित करते हैं। उनमें स्थित षड ऐश्वर्य को भी प्रकटित करते हैं। इसलिए बैकुंठ आदि भगवत धाम समूह चित् शक्ति के जिस अंश के विलास हैं उस अंश के नियंता श्री संकर्षण हैं । यह श्री महा संकर्षण अंश हैं श्री मन नित्यानंद राम के। इस प्रकार श्री नित्यानंद- राम- निताई चांद प्राकृत चिन्मय भगवत धामों में अनेक रूप धारण कर श्रीकृष्णचंद्र की लीला स्थली, धाम उपकरण आदि रूप में अनेक विधि सेवा संपादन करते हैं।

क्रमशः....

📝ग्रन्थ लेखक :-
व्रजविभूति श्री श्यामदास जी
🎓प्रेरणा : दासाभास गिरिराज  नांगिया जी

✍प्रस्तुति : नेह किंकरी नीरू अरोड़ा

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