राधा बाबा

●▬ஜ۩🌺 *ब्रज दर्शन* 🌺۩ஜ▬●                     *"श्रीराधाभावलीलालीन सन्त पूज्य "श्रीराधाबाबा"*

           राधा बाबा का आविर्भाव बिहार के गया जिले के अन्तर्गत फखरपुर ग्राम में सन् 1913 की पौष शुक्ल नवमी को हुआ था। उनके बचपन का नाम चक्रधर मिश्र था। उनके परिवार का पालन-पोषण प्राचीन परिभाष्य कार्य पौरोहित्य से होता था। बालक चक्रधर के विलक्षण योग्यता के बारे में अध्यापकों को प्रारंभ में ही ज्ञान हो गया था। होनहार विरवान के होत चिकने पात। भला कैसे छिपता? अपने सहपाठियों में वे अग्रणी थे। उनमें नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद भारत माता को अंग्रेजी पाश से मुक्त कराने के लिए उन्होंने आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। स्वतंत्रता संग्राम में उन्हें दो बार जेल की भी यात्रा करनी पड़ी। जेलर क्रूर था। उसने बाबा को असनीय कष्ट दिया। उन कठोर यातनाओं के में उन्हें कई बार भगवत्कृपा की विशिष्टानुभूति हुई। इन दिव्य अनुभूतियों ने बालक चक्रधर के मन में यह प्रेरणा जगा दी कि जेल से बाहर आने के बाद भगवदीय जीवन व्यतीत करना है।
        जेल से बाहर आने के बाद उनके अग्रजों ने उन्हें आगे के अध्ययन के लिए कलकत्ता बुला लिया। वहाँ स्कूली अध्ययन के साथ उनका स्वाध्याय भी होता रहता था। स्वाध्याय करते-करते उनके मन का झुकाव वेदान्त की ओर होने लगा और वे शांकरमतानुयायी हो गए। जब वे इण्टर कक्षा के विद्यार्थी थे, तब भगवदीय प्रेरणा से शारदीय पूर्णिमा के दिन उन्होंने संन्यास ले लिया। इससे उनके परिजनों को मर्मान्तक पीड़ा हुई, परन्तु सब जानते थे कि चक्रधर अपने निश्चय से डिगने वाला नहीं है। वे स्वयं के स्थिति की परीक्षा लेने के लिए कलकत्ते में गंगा के किनारे कुष्ठ रोगियों के बीच बैठने लगे।
                 एक दिन जब वे कलकत्ता के गोविन्द भवन गये तो वहाँ पूज्य रामसुखदास जी महाराज से उनका सम्पर्क हुआ। उनके माध्यम से सेठ जयदयाल गोयन्दका जी से भी मिलन हुआ। सेठजी साकार एवं निराकार-दोनों प्रकार की निष्ठाओं के विश्वासी थे, पर बाबा की निष्ठा सिर्फ निराकार में थी। कई दिनों तक पारस्परिक विचार-विनिमय हुआ परन्तु सेठजी चक्रधर बाबा की विचारधारा में परिवर्तन नहीं ला सके। फिर भी यह तय हुआ कि श्रीमद् भागवत् पर टीका-लेखन का कार्य गोरखपुर की गीताप्रेस से हो।  इस प्रकार सेठजी के परामर्श के अनुसार चक्रधर बाबा गोरखपुर की गीता वाटिका गए। उस समय गीता वाटिका में एक वर्षीय अखण्ड भगवन्नाम-संकीर्तन का भव्यानुष्ठान चल रहा था। वहाँ बाबू जी हनुमान प्रसाद पोद्दार आए और उन्होंने गैरिक वस्त्रधारी युवक संन्यासी के चरण छूकर प्रणाम किया। इस प्रणाम का चमत्कार अनोखा था। सेठ जयदयाल जी के साथ कई दिवस विचार-विनिमय के उपरान्त भी जो परावर्तन नहीं हो पाया, वह कार्य इस क्षणिक स्पर्श ने कर दिखाया। निराकार निष्ठा तिरोहित हो गयी और साकारोपासना का बीजारोपण इस युवा संन्यासी चक्रधर बाबा के अन्तर में हो गया।
       बाद में गीतावाटिका में हनुमान प्रसाद पोद्दार जी के साथ ही स्वामी जी रहा करते थे। स्वामी जी आगे चलकर श्री राधा बाबा के नाम से विख्यात हुए। कहते हैं कि बाबा को अद्वैत तत्त्व की साधना करते हुए सिद्धि मिली। श्री राधाबाबा के रोम-रोम में श्री राधारानी बसी हुई थीं। उनका मन नित्य वृन्दावनी-लीला में रमा रहता था। राधा-कृष्ण की प्रीति के साकार स्वरूप बाबा सदा निस्पृह भाव से जन सेवा में लीन रहते थे।
          गीतावाटिका में विख्यात श्रीराधाष्टमी महोत्सव का शुभारंभ राधाबाबा ने ही किया। उन्होंने श्रीकृष्णलीला चिंतन, जय-जय प्रियतम, प्रेम सत्संग सुधा माला आदि शीर्षकों से साहित्य का प्रणयन भी किया।
             बाबा अपनी साधना वस्था में प्रतिदिन तीन लाख नाम जप किया करते थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने अनेक बार श्रीमद्भागवतमहापुराण का अखंड पाठ किया। बाबा भगवद् भाव राज्य में प्रवेश करके अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के साथ नित्य लीला-विहार किया करते थे। बाबा के अन्तर में प्रेम का स्रोत निरन्तर प्रवाहित रहता था। पहले वे कट्टर वेदान्ती थे। अद्वैत तत्त्व की साधना करते समय उन्हें सिद्धि मिली थी। श्रीराधा भाव मधुरोपासना का शिखरबिन्दु है और सन् 1957 के 8 अप्रैल को बाबा की श्रीराधा भाव में प्रतिष्ठा हुई। श्री राधाभाव में प्रतिष्ठा होने से और श्रीराधा नाम का आश्रय लेने के कारण ही वे ‘राधा बाबा’ के नाम से विख्यात हुए।
            राधा बाबा सेवक भी थे, प्रेरक भी थे। उन्हीं की प्रेरणा से 16 फरवरी, 1975 को हनुमान प्रसाद पोद्दार कैन्सर अस्पताल की स्थापना का संकल्प लिया गया, जहाँ आज भी अनेक रोगी चिकित्सा लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
         उनके ही संकल्प से 26 अगस्त, 1976 को बाबू जी के स्मारक के निर्माण का कार्य पूर्ण हुआ। सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य है गीता वाटिका में श्रीराधाकृष्ण साधना मन्दिर, जो भक्तजनों के आकर्षण का केन्द्र है।
             श्री राधाबाबा 13 अक्टूबर, 1992 को सदा के लिए अंतर्हित हो गए। बाबा का सुंदर एवं प्रेरक श्रीविग्रह गीतावाटिका गोरखपुर के नेह-निकुंज में प्रतिष्ठित है।
                 
●▬ஜ💐 *जय जय श्रीराधे*💐ஜ▬●

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