गोप 3

श्रीगोपदेवी-लीला
निरंतर.......
(सखी देबी के पास जाय कैं)
सखी- हे सुंदरी! मैं आप कूँ नमस्कार करूँ हूँ और इतनौ निबेदन करूँ हूँ कि आप कहाँ सू पधारी हौ, सो हमकौं बताऔ।
देबी- अहमपि नमस्करोमि काचिदहं श्रीराधादर्शनार्थं दूरदेशात् समायातास्मि।
सखी- हैं? यह तो देवबानी बोलै है। अजी, आप भीतर पधारौ।
देबी- (श्रीजी के पास आय कैं) श्रीमति! भवतीं नमस्करोमि।
(मैं आप कूँ नमस्कार करूँ हूँ)
श्रीजी- सखि सुभगे, स्वागतं स्वतः आगताया भवत्याः। भूरिभाग्यमस्ति मम।
(अहाहा! पधारौ-पधारौ। हमारौ धन्य भाग्य है। बड़े ऐसैं ही घर बैठें दरसन दैं हैं।)
हे देबि, स्वागमनस्य हेतुं विस्तरशो वद। यच्च मम योग्यं कार्यं तद् ब्रूहि।
(हे देबि! आप अपने आगमन कौ कारन बिस्तारपूर्वक कहौ। और मेरे जोग्य कार्य होय सो कहौ।)
भगन्नामधेयं किमस्ति, तन्मे वद।
(आप कौ नाम कहा है, सोऊ कहौ।)
गोपदेवी- मम नाम्ना किं प्रयोजनम्?
(अजी! मेरे नाम सौं आप कौ कहा प्रयोजन है?)    श्रीजी- त्वत्सदृशं भूतले न दृश्यते क्वापि।
(अजी, आप के समान रूपवारी या पृथ्वी पै कोई नहीं दीखै है, यही प्रयोजन है।)
गोपदेवी- हे रम्भोरु, नन्दनगरनिवासिनी गोपदेवीत विख्यातास्मि।
(हे राजदुलारी जू! मैं नन्दरायजी के नगर में रहिबेवारी गोपदेवी नाम करि बिख्यात हूँ।)
हे चंचलापाङ्गे, त्वद्रूपगणामाधुर्यं च श्रुत्वा भवद्दर्शनार्थं दूरदेशात समायातास्मि।
(हे चंचल कटाच्छवारी आपके रूप-रागु-माधुर्य की प्रसंसा सुनि आपके दर्शनार्थ आई हूँ।)
श्रीजी- हे देवि! नन्दनगरनिवासिन्यसि, वर्णमपि ते मत्प्रियतमनन्दात्मजसदृशमेव भाति इति त्वमपि मम प्रियैवासि।
(हे देबि, आप श्रीनंदरायजी के नगर में रहिबेवारी हैं और आप कौ स्वरूप हू मेरे प्रीतम श्रीस्यामसुंदर कौ सौ है, याते आप मेरी अति ही प्यारी हो।)
हे मृगलोचने! मद्वचनं श्रुत्वा किं कारणं त्वं विमना जाता।
(हे मृगनैनी, आप मेरौ बचन सुनि कैं उदास क्यौं है गईं? या कौ कहा कारन है?)
गोपदेबी- किं कुटिलतमं धूर्त्तं नन्दात्मजं स्वाप्रियतमं मन्यसे?
(अजी, कहा आप वा अतिकुटिल धूर्त्त नंद के पुत्र कूँ अपनौ प्रीतम मानौ हौ?)
श्रीजी- अत्र कः संदेह? न स केवलं ममैव प्रियतमः किंतु निखिलभूमण्डलस्य प्राणिमात्रस्य स आत्मवत् प्रियोऽस्ति।
(यामें कहा संदेह है? वह नंदनंदन केवल मेरौ ही प्रीतम नहीं किंतु सगरे जगत के जीव-जंतुन कौ आत्मा के तुल्य प्यारौ है।)
गोपदेबी- भो वञ्चितासि त्वम्। प्राणिमात्रस्य प्रियस्तु परमेश्वर एव। स किं परमेश्वरः?                     क्रमश.........

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