यमुना अवतरण

*श्री यमुना जी का गोलोक से अवतरण*
.      *और*
*पुन: गोलोक धाम में प्रवेश:-*
श्री गोकुल में आने पर परम सुन्दरी यमुना ने अपने नेतृत्व में गोप-किशोरियों का एक यूथ बनाया और श्रीकृष्णचन्द्र के रास में सम्मिलित होने के लिये, उन्होंने वहीं अपना निवास स्थान निश्चित कर लिया।
तदनंतर वे जब व्रज से आगे जाने लगीं, तब व्रज भूमि के वियोग से विह्वल हो, प्रेमानन्द के आँसू बहाती हुई पश्चिम दिशा की ओर प्रवाहित हुई।
तदनंतर व्रज मण्‍डल की भूमि को अपने वारि-वेग से तीन बार प्रणाम करके यमुना अनेक देशों को पवित्र करती हुई उत्तम प्रयाग में जा पहुँची। वहाँ गंगा जी के साथ उनका संगम हुआ और वे उन्हें साथ लेकर क्षीर सागर की ओर गई, उस समय देवतओं ने उनके ऊपर फूलों की वर्षा की और जय जयघोष किया।
कलिंदनन्दिनी  श्रीयमुना ने समुद्र तक पहुँच कर गदगद वाणी में श्री गंगा से कहा:-
*यमुना ने कहा:-* समस्त ब्रह्माण्ड़ को पवित्र करने वाली गंगे, तुम धन्य हो।
साक्षात श्रीकृष्ण के चरणाविन्दों से तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है, अत: तुम समस्त लोकों के लिये एक मात्र वन्दनीय हो। हे शुभे, अब मैं यहाँ से ऊपर उठकर श्री हरि के लोक में जा रही हूँ, तुम्हारी इच्छा हो तो तुम भी मेरे साथ चलो।

*🌹गंगा बोली:-🌹* हे कृष्णे, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को पावन बनाने वाली तो तुम हो, अत: तुम्हीं धन्य हो। श्रीकृष्ण के वामांग से तुम्हारा प्रादुर्भाव हुआ है, तुम परमानन्द-स्वरूपी हो,  परिपूर्णतमा हो।
श्रीकृष्ण की पटरानी हो, अत: कृष्णे, तुम सब प्रकार से उत्कृष्ट हो,मैं प्रणाम करती हूँ। तुम समस्त तीर्थों और देवताओं के लिये भी दुर्लभ हो, गोलोक में भी तुम्हारा दर्शण दुष्कर हैं।
मैं तो भगवान श्रीकृष्ण की ही आज्ञा से मंगलमय पाताल लोक में जाऊँगी। यद्यपि तुम्हारे वियोग के भय से मैं बहुत व्याकुल हूँ, तो भी इस समय तुम्हारे साथ चलने में असमर्थ हूँ।  बृज के रास मण्‍डल में
मैं भी तुम्हारे यूथ में सम्मिलित होकर रहूँगी।
इस प्रकार एक-दूसरे को प्रणाम करके दोनों नदियाँ तुरंत अपने-अपने गंतव्य पथ पर चली गई। गंगा जी अनेक लोकों को पवित्र करती हुई पाताल में चली गयीं और वहाँ भोगवती-वन में जाकर *भोगवती ~ गंगा* के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

इधर कृष्णा अपने वेग से सप्तसागर-मण्‍डल का भेदन करके सातों द्वीपों के भूभाग पर लौटती हुई और भी प्रखर-वेग से आगे बढ़ी।
सुवर्णमयी भूमि पर पहुँच कर लोका-लोक पर्वत के शिखरों तथा गण्‍डशैलों (टूटी चट्टानों) के तट का भेदन करके, कालिन्दी फुहारे की-सी जलधारा के साथ उछल कर लोका-लोक पर्वत के शिखर पर जा पहुँची।
फिर वहाँ से ऊर्ध्वगमन करती हुई  स्वर्ग लोक तक जा पहुँची। फिर ब्रह्मलोक तक के समस्त लोकों को लाँघ कर श्री हरि के पद-चिन्ह से लाच्छित श्री ब्रह्मद्र्व से युक्त ब्रह्माण्ड विवर से होती हुई, आगे बढ़
गयीं।
उस समय समस्त देवता प्रणाम करते हुए उनके ऊपर फूलों की वर्षा कर रहे थे।
इस तरह सरिताओं में श्रेष्ठ यमुना पुन: श्रीकृष्ण के गोलोक धाम में आरूढ़ हो गयीं।
कलिन्दगिरिनन्दिनी यमुना के इस मंगलमय चरित्र का भूतल पर यदि श्रवण या पठन करके इस चरित्र को मन में धारण करें तो वह भगवान की निकुंज लीला के द्वारा वरण किये गये उनके परमपद-गोलोकधाम में पहुँच जाता है।

*इस प्रकार श्री गर्ग संहिता में 'श्रीवृन्दावन खण्‍ड' मे नन्द-सन्नन्द संवाद में ‘कालिन्दी के आगमन का वर्णन’  अध्याय पूरा हुआ।*
*सभी भगवदीयों को जय श्री राधे-कृष्ण..!!*

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