पत्रामृत
पत्रामृत्र
*शास्त्र ग्रंथ और महत्-पुरुषों की जीवनी की चर्चा के द्वारा ही साधुसंग होता है* :---
साक्षात रूप से साधु-गुरु के उपदेश-निर्देश प्राप्त करने में असुविधा होने पर ग्रंथ रूपी साधुसंग की व्यवस्था शास्त्रों मे दी गई है। महत् पुरुषों की जीवनी और वाणी का एक ही तात्पर्य है, इनका अनुशीलन और चर्चा करने से साधक-साधिका का आत्मकल्याण अवश्य होता है। तुम नियमित रूप से शास्त्र-ग्रंथों की चर्चा करना। श्रीगौड़ीय पत्रिका, जैवधर्म, श्रीमन्महाप्रभु की शिक्षा, श्रीहरिनाम-चिंतामणि, श्रील भक्तिविनोद ठाकुर की प्रबंधावली धीर-स्थिर भाव से पढ़ना। श्री गौड़ीय-गीतीगुच्छ से भजन-कीर्तन आदि सीखना और अपने आप गुनगुनाते हुए कीर्तन करना। 'मायावाद की जीवनी' पढ़कर समझने की चेष्टा करना। प्रतिदिन निर्बन्धपूर्वक (प्रतिज्ञापूर्वक) निरपराध होकर श्रीहरिनाम संख्या पूर्ण करना आवश्यक है। लक्ष-नाम(एक लाख नाम) ग्रहण नहीं करने से श्रीभगवान सेवक की दी हुई वस्तु को स्वीकार करने में अनिच्छा प्रकाश करते हैं। जो प्रतिदिन बिना चूके एक लाख नाम ग्रहण करते हैं, उनको श्रीमन महाप्रभु ने 'लक्षेश्वर' (लखपति) कहा है। "देख, नाम बिना जेन दिन नाहि जाय" (देखो, नाम के बिना दिन ना बीत जाय) --- उनका यह आदेश यर्थाथ रूप में पालन करना चाहिए।
-- *श्रील गुरुदेव भक्ति वेदांत वामन गोस्वामी महाराज जी, सभापति-आचार्य श्री देवानन्द गौड़ीय मठ, नवद्वीप*
Comments
Post a Comment