गम्भीरा भाव (सखिजु)

आज हम श्री क्षेत्र में श्री श्री गंभीरा जी के सामने ही अपना आसन जमाये बैठी हैं । आज श्री श्री मन महाप्रभु जी का दिव्य महा संकीर्तन हो रहा है, सारा गौर परिकर आज यहां उपस्थित हैं , दिव्य वातावरण हो रहा है चारो तरफ संकीर्तन के रज कण गुंजायमान हो रहे हैं, सभी सन्त महात्मा गौर परिकर से एक दिव्य सुंघन्द की रसानुभूति आच्छादित हो रही है। हमारा तन मन प्राण अब हमारे बस में नही हो पा रहा, मन हो रहा अंदर चला जाऊं परन्तु इस तुच्छ जीव का अंदर प्रवेश से कहीं दिब्य वातावरण दूषित न हो जाये इसी मनोइच्छा से बाहर है आसन लगाए रखा है ।

द्वार पर सभी भक्तों के श्री पादुका का जमावड़ा लगा हुआ है अहा जैसे लग रहा इस दीन को आज हीरे जवाहरात का खजाना मिल गया, हम तो इसी पद रज में लोट पोट हो रहे, आहा दिव्य दिव्य आनंद, चिन्मय आनंद की प्राप्ति हो रही। हमने एक एक करके सभी भक्तों की पादुका पर स्नेह सुमन अर्पित किये तथा अपने गले मे माला बना डाल लिया है, दिव्य उन्मांद से तन मन प्राण तृप्त हो रहे हैं। आज दिव्य कृपा बरस रही है ।

हम अपनी उन्माद अवस्था मे पूर्ण रूप से लीन थे कि अचानक अंदर से एक गौर भक्त आते हैं और हमको अंदर ले जाने का आग्रह करते हैं हमारे जैसे तुच्छ जीव पे इतनी करुणा देख हृदयभर गया । हमने भी उसी आग्रह को सादर प्रूवक कह दिया हम।अंदर जाने लायक न है, हमने जान भुज के आज कोड़ी रूप का वरण ओढ़ रखा था ताकि कोउ भक्त हमे न देखे न पास आये ताकि उनकी भजन साधना में विक्षेप न हो.

श्री गंभीरा जी का आज वातावरण दिव्य रसों से छलक रहा है, फिर रस सागर श्री श्री मन महाप्रभु के हृदय तक हमारे स्पंदन कैसे न पहुंचते । उन्होंने दुबारा श्री श्री स्वरूप दामोदर जी के साथ दो और भक्तों को भेजा हमे प्रेम सहित भीतर आने को, परंतु हम तो अति दीन हीन अवस्था के हैं वहां पधारे एक भक्त के चरण पादुका बनने के भी लायक नही ऐसे में कैसे किस मुँह से भीतर जाये, हमने सादर नमन करके श्री दामोदर जी को भी वही कहा आप भीतर लौट जाएं इस अधम जीव को बस इस द्वारपे पड़ा रहने की अनुमति दिला दें। श्री दामोदर जी भी क्या करते इस हटी जीव के हट के सामने, वो भीतर चले गए।

हा नाथ इस बार हम यह क्या देख रहे करुणामूर्ति दयाल श्री श्री नित्यानंद प्रभु दल समेत द्वार की तरफ आ रहे हैं, कहीं उनका ध्यान कीर्तन पद से हटके इस अधम पर न आ जाये ये सोच हम उन्ही पादुकाओं के नीचे अपने को छुपा लिया। परन्तु ये क्या श्री प्रभु तो हमारे सामने आ के नृत्य मुद्रा में हमको है पुकारने लगे, उन्होंने कहा उठ वत्स तेरे मालिक का सन्देश आया है देख सब तुझे भीतर लेने आये हैं, हम दस हाथ जैसे जमीन भीतर गड गए इतनी करुणा सुन अब न रह जा रहा स्वयम दींन दयाल  को कष्ट उठा कर यहां आना पड़ा धिक्कार है इस आधम जीव पर ये सब सोच हम उठ खड़े हुए और बिनती करने लगे , प्रभु इस कोढ़ी अधम के पास मत आइये हम तन मन प्राण किसी से भी भीतर प्रवेश लायक न हैं हमें क्षमा दान दीजिये, प्रभु कहाँ मानने वाले उनको तो करुणा वरुणालय श्री महाप्रभु जी का आदेश मानना था। उन्होंने कहा देख अगर नही मानेगा तो कंधे पे उठा ले जाएंगे , हा गौरं ये सुनने से पहले शरीर क्यों न त्याग दिया हमने।

पररन्तु श्री प्रभु का आदेश टालने की सामर्थ्य अब हमें न रही इस शर्त पर भीतर जाने को हम तैयर हुए की सबके पीछे छुप छुप के जायंगे और कोई भी हमे वहां श्री महार्पभु की तरफ द्रश्य करने को न कहे वरना हमारे प्राण उड़ जाएंगे। ऐसा है होगा कह श्री निताई चाँद आगे आगे सबसे पीछे ये दासनुदास चले जा रहा है।  भीतर का वर्णण कहने की सामर्थ्य इस तुच्छ जीव में नही फिर भी प्रयास करता हूँ।

भीतर एक दिव्य सिंहशन पर हमारे श्री श्री मन महाप्रभु विराजमान हैं सारे गौर भक्त संकीर्तन मुद्रा में मस्त अपने
भुजाओ को उठा उठा के झूमरहे हैं। जैसे ही महाप्रभु को स्पर्श करके उस शीतल पवन के झोंके ने हमे छुआ हम मूर्छित हो गए। कहाँ है कुछ पता नही बस एक शीतल एहसास में दबे हुए पड़े वहां। जब तक कुछ होश आता हमने महसूस किया कि संकीर्तन ध्वनि कुछ तेज तेज हमारे कर्ण पर्ण को भेद रही, एक झुमन सी अंग कांति की महक दुबारा बेहोश होने को कर रही, आंख खुलते ही देख आंख बाहर आ गयी, ये क्या, हमारा शरीर तो उस दिव्य सिंहासन के तले श्री स्वरूप दादा के गोद मे पड़ा हुआ था। और ठीक सामने श्री सहित महाप्रभु नृत्य मुद्रा में झूम रहे थे। हम कुछ सकुचा के भागना चाहे वहाँ से की श्री श्री अद्वैत आचार्य जु हमारे ठीक सामने आ खड़े हुए और कहने लगे , महाप्रभु देखो तुम्हरा चहीता उठ गया आओ इसको प्रेम आलिंगन दे के कृतार्थ करो

देखते ही देखते श्री महाप्रभु जी ने हमको अपने आगोश में भर लिया, आआह वो वो नाजरा हम कभी न भूल पाएंगे, हमारा रोमरोम गौर प्रेम में रोमांचित हो उठा, हम न कुछ कह पाए न बोल पाए उनके सामने जैसे कठपुतली बन गए। हमको दुबारा प्रेम मुर्छा ने घेर लिया। बहुत देर बाद श्री श्री नित्यनानन्द प्रभु के स्पर्श से हिमको कुछ बाह्य ज्ञान हुआ तब तक संकीर्तन विश्राम हो चुका था। एक अजीब सी शांति ने पूरी श्री गंभीरा परिसर को गले से लगा रखा था। तभी श्री महाप्रभु जी श्री निताई चंद को इशारा करते हुए बोले, "कहिये श्री पाद आपके प्यारे को क्या दिया जाये" , श्री निताई चाँद कुछ बोलते इससे पहले श्री महाप्रभु जी स्वयम मुझे इंगित करते हुए कहने लगे, " क्यूँ रे , हमको आज पाग धारण न कराएगा, तेरी तो अभिलाशा रहती की मुझे पटका पहनाये हमको पाग धारण कराये आज नही कराएगा क्या"
हम निशब्द वहां पड़े हुए थे, की श्री स्वरूप दामोदर जी ने श्री महाप्रभू जी को कहा कि हे रस सागर कृपा मूर्ति आप इस अवस्था मे कैसे पगड़ी धारण कर सकते, आप अभी सन्यास ग्रहण कर चुके हैं, तभी श्री महाप्रभु जी ने भावावेश में कहा," हम शरीर से सन्यास जरूर धर सकते हैं किंतु हमारे प्रेयसी हमारे प्रेमी भंक्तों के लिए सदा हम वही रास विलासि कृष्ण रहेंगे। और कृष्ण को पाग धारण करना किसी धर्म या कर्म के विरुद्ध कदापि नही। यह सुन श्री नित्यानंद समेत सभी गौरभक्त झुंझुम के नाचने गाने लगे। पर हम क्या करसकते थे उनकी हाथ की कठपुतली जो बने हुए थे।

आज देखिए श्री महाप्रभु जी हमसे वस्त्र धारण कराना चाहते है हिमने भी हिम्मत बांध उनकी हाँ में हाँ मिला दिया। तभी श्री महाप्रभु जी हमको कहएय, " क्यूँ रे तुझे नील रंग बड़ा पसंद है ना हमारे श्री पाद के जैसे, तभी उन्हीने श्री नित्यनानन्द प्रभ से उनका नील वर्ण पटका मांग लिया और हमको आदेश करते हुए कहा कि आज हम।तेरे हाथ से श्री पाद की प्रसादी धारण करेंगे आजा आज हमको ये नील पटका धरण करा के श्री कृष्ण प्रेम प्रप्त करो। बड़े है स्नेह पूर्वक श्री महाप्रबु जी ने पटका धारण किया, तभी अचानक श्री नित्यानंद प्रभू बोले हे गौर वर्ण प्रेम दाता आप अभी इसी पटके से पागड़ी धारण कर इस जीव को कृतथ कीजिये, श्री नित्यानंद प्रभू का प्रेम आग्रह सहज है स्वीकर कर लिया और हमारे हाथों से अपने दिव्य शीश कमल पर नील वर्ण पाग धारण करी। " गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, राधा रमन हरि श्री कृष्णा बोलो" से एक बार फिर श्री गंभीरा गुंजायमान हो गयी, और हम फ्रिर से प्रेम मुर्छा की गोद मे छुप गए।।
जय जय श्री निताई गौर सीतानाथ ।

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