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श्रीगोपदेवी-लीला

(सखी देबी के पास जाय कैं)
सखी- हे सुंदरी! मैं आप कूँ नमस्कार करूँ हूँ और इतनौ निबेदन करूँ हूँ कि आप कहाँ सू पधारी हौ, सो हमकौं बताऔ।
देबी- अहमपि नमस्करोमि काचिदहं श्रीराधादर्शनार्थं दूरदेशात् समायातास्मि।
सखी- हैं? यह तो देवबानी बोलै है। अजी, आप भीतर पधारौ।
देबी- (श्रीजी के पास आय कैं) श्रीमति! भवतीं नमस्करोमि।
(मैं आप कूँ नमस्कार करूँ हूँ)
श्रीजी- सखि सुभगे, स्वागतं स्वतः आगताया भवत्याः। भूरिभाग्यमस्ति मम।
(अहाहा! पधारौ-पधारौ। हमारौ धन्य भाग्य है। बड़े ऐसैं ही घर बैठें दरसन दैं हैं।)
हे देबि, स्वागमनस्य हेतुं विस्तरशो वद। यच्च मम योग्यं कार्यं तद् ब्रूहि।
(हे देबि! आप अपने आगमन कौ कारन बिस्तारपूर्वक कहौ। और मेरे जोग्य कार्य होय सो कहौ।)
भगन्नामधेयं किमस्ति, तन्मे वद।
(आप कौ नाम कहा है, सोऊ कहौ।)
गोपदेवी- मम नाम्ना किं प्रयोजनम्?
(अजी! मेरे नाम सौं आप कौ कहा प्रयोजन है?)

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