गौर रस तरँग(यशु)

🌹 *गौर रस तरँग* 🌹

*गौर*, ये क्या एक शब्द हैं भला?
नहीं नहीं.....मेरे लिए तो अनूप महासागर से भी गहरा, अनंत ब्रह्मांड से ऊंचा, या यूँ बोलूँ की इस दिव्य नाम की महिमा की उपमा देते न बनती। बन भी कैसे सकती?

ये सिर्फ नाम नही कोटि-कोटि प्रेम सागर का निचोड़ है। कलियुग पावनावतार श्रीगौर हम जैसे अधमों को तारने हेतु प्रकट हुए। गौर नाम में इतनी मिठास हैं कि रसना और सारे स्वाद भूल जाएगी यदि एक बार रसना ने हरी गौर का नाम रस चख भर लिया।पीना तो बहुत दूर की बात यदि चख भर भी लिया तो अतृप्ति के सागर में गोते लगाने जैसा है। गौर एक दिव्य उन्माद हैं उनके प्रेम का सागर जिस हृदय में हिलोरे मारता वो हृदय अनन्त कोटि जीवों को अकेले ही तारने में सक्षम हो जाता है।

श्रीगुरुगौरांगो जयते !!
    

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