गोप 9

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

श्रीगोपदेवी-लीला
निरंतर.......।
प्यारे!आपके बिना इन आँखिन कूँ दूसरौ कौन अच्छौ लगैगौ?कहा अमृत पीकैं अब छाछ पीवेंगी?
सखी- हे सखी!प्यारी की तौ स्याम के दरसन करिबे पै औरहू बिकलता बढ़ि गई!अब तू तौ यहाँ प्यारी के पास ही रहौं और मैं जाऊँ हूँ।यदि प्यारे मिलैं तौ काहू जुक्ति स लिवाय कैं लाऊँ।
सखी- हाँ, सखी!बेगि ही जा।
(मुधमंगल-आगमन)
सखी- हाँ, ये सखा आय रह्यौ हैं;स्यामसुंदर कौ पतौ याही सौं पूछूँ।अरे लाला मनसुखा!ओ मनसुखा!सुनै नायँ?
मधु.- चुप्प, छै आँगुर की छोरी!तोपै बोलिबौ हू नायँ आवै?तू कब ते बड़ी बूढ़ी बनि बैठी सो मोते लाला कहिं कैं बोलै है?
सखी- अच्छौ, तू ही बताय- कैसैं बोलैं हैं।
मधु.- फिर तू-तू- ‘तू’ नहीं, बावरी, आप कहि कैं बोल।याही श्रीविग्रह सौं तेरौ कल्यान है।सुन, ऐसैं बोल-श्रीमान, घीमान, ऐस्वर्यमान, पूज्यपाद, महामना, महोपाध्याय, प्रातःस्मरणीय, स्वनामधन्य, मधुमंगलाचार्य पंचबेदीजी महाराज ऐसैं बोल।
सखी- अजी मधुमंगल जी महाराज!आप द्विबेदी नहीं, त्रिबेदी नहीं, चतुर्बेदी नहीं, पंचबेदी- सो पाँच बेदन के ज्ञाता कब सौं भए?
मधु.- सुन सखी!चार बेद तो हमनैं ब्रह्माजी कूँ पहिलें ही दै दिये, सो याते ये सृष्टि कर्म चल रह्यौ है।और पाँचवौ बेद ये लट्ठ हमारे हाथ में है ही, याके आगे तैतीस कोटि देवता नमस्कार करै हैं।छत्र याही पै तेल चढ़ाय के प्यार करै हैं, सूद्र सब याही की बेगार करैं हैं, और बनियाँ याही के डर से उधार करैं हैं।सुन लई नाँ पांच बेद की व्याख्या?याकी ब्याख्या में स्त्रोत्रन के करोनन पत्रा भरे हैं।
सखी- अच्छौ, पाँच बेद की ब्याख्या तौ सुनि लई।अब यौंबताय कि तेरौ सखा गोपाल कहाँ है।

   मधु.- कौन सौ गोपाल?
सखी- गोपाल कहा दस-बीस हैं?वही एक गोपाल।
मधु.- दस-बीस नहीं, अनेकन हैं।
सखी- अनेकन कैसैं हैं?
मधु.- गवां पाल इति गोपालः।जो गैयान कूँ चरावै, वही गोपाल।तेरे गोपाल के नाम की कहा छाप लग रही है?
सखी- अरे बावरे, मैं नंदनदन की कहूँ हूँ।
मधु.- भलौ, वाते तेरौ कहा काम है?वा बात कौं मोही ते कहि दै।
सखी- अरे लाला!जाकी बात, ताहीं सौं कही जाय है।तोसौं कैसैं कहि दऊँ?
मधु.- बावरी, तू मो में और कृष्ण में कछू भेद समझै है का?वह हमारौ ही तौ सखा है?हमारे संग उठै, संग बैठे, संग खावै और खेलत में जब हमते हार जाय है तो हम वाकी पीठ पै चढ़ि कैं चढ्ढी लेय हैं।बताय, वह हम तें कैसे बड़ौं है?
सखी- अरे बावरे, उन नै गिरिराज कूँ उठायौ, इंद्र कौ मद भंग कियौ, काली कूँ नाथ्यौ;पूतना, संकट, तृनावर्त्त- बड़े-बड़े दैत्य मारे।
तैंने एक मूसरी हू मारी होय तो बता।फेर वे तोसौं कैसैं बड़े नहीं हैं?
क्रमश.......

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