लीला (यशु)
*लीला रस भाव 1*
रात्रि समापन की ओर अग्रसर है, श्री श्री गौरांग महाप्रभ श्री वास पंडित के कुसुम कानन में विश्राम अवस्था में बिराजसमान है, तभी मधुकर कोकिला आदि की मीठी मीठी ध्वनि श्री कर्ण में पड़ते ही उनकी निद्रा भंग हो जाती और स्वामी पुलकित हो कर बैठ जाते हैं। उस समय वे ऐसा अनुभव करते जैसे श्री कृष्ण के पार्श्व में श्री राधा रानी अब स्थान कर रहीं। उनके नेत्रों से प्रेमाश्रु प्रवहित होते जा रहे हैं। और उनके समस्त अंगो को भिगो दे रहें हैं। हे मन तू उस सुवर्ण कांति श्री गौरांग का स्मरण कर।।।।।
श्री वृंदा देवी के आदेष पे सभी कोकिल पक्षी आदि कलरव करने लगते हैं। और श्री जुगल किशोर जाग कर भी आलस मुद्रा में सुख मई क्रीड़ा का त्याग नही कर पाते। तब श्री वृंदा देवी के आदेश युक्तहो कर दो पक्षी दक्ष और कोकिल श्री युगल के रसआलस्य को दूर करते हैं। अपने मधुर माधुरी गीतों से।
हे गोपीजन लोचन अमृत! हे रस सागर सागरिका , निद्रा का त्याग करो। रजनी बीत चुकी, अभी माता जसोदा पूर्णमासी के साथ आपके शयन भवन में आपका मुख चन्द्र दर्शन करने आती ही होंगी। हे ब्रज नाथ हे रस सिन्धु! जमुना तट का त्याग कर नंद भबन पधारो।
हे स्वामिनी! ठीक है कि आप इस रस मयि निद्रा का त्याग न कर पा रहीं किंतु पूर्व दिशा की ओर सूर्य देव रथ आरूढ़ होने को तैयार हैं। अतः शीघ्र ही वृषभानु भवन चलो। आपकी जय हो।।।।।
इस प्रकार बार बार कोकिल के वचन सुनकर श्री श्री जुगल किशोर अंग मोटण करते हुए सहसा ही जम्हाई लेते हुए उठ बैठे।।।।।।।
मृदुल कुसुम शया पे प्रेम मई श्री राधा जु के भाव मे श्री ग़ौर शयन कर रहे हैं। दायें अरु पर वाम अरु रख कर नायक के पार्श्व में नायिका की भाँति सुख पूर्वक शयन कर रहे श्री ग़ौर हरि।
चलिए शयन मन्दिर में चल कर श्री श्री ग़ौर के शयन इस्थिति का एक नजारा लेते हैं
चारो ओर सुवर्ण दंड पर चन्द्रा तप बंध रहा हैं। उस पर कमल स्वस्तिक चिंहित हो रहे हैं। दोनो ओर स्वर्ण कालिका के द्वीप प्रज्वलित हो रहे हैं
श्री युगल किशोर के अलौकिक माधुर्य से शयन कुंज अतीव शोभा पा रही हैं। श्री युगल शयन शया पे परस्पर आलिंगन करते हुए बिराजमान अवस्था में हैँ।
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