निताई शतक

वन्दौं श्रीगुरु गौरांग, कुञ्ज केलि मत्त भृंग, वन्दौं राम श्री राधारमण।
वन्दौं प्राण गौर गण, बन्दौ़ं श्री शचीनन्दन, वन्दौं राधागोविन्दचरण।।१।।

महामदे हैया भोर, नाचे के एइ पागल, वरिषये प्रेमामृत धार।
हाँसे कान्दे नाचे गाये, भूमे गड़ागड़ि याय, कभु मूर्च्छा धरणी ऊपर।।२।।

झलमल आभरण, झलसाय जगन्नयन, झर झर धारा अनिबार।
झमझमझम नूपुर बोल, झांझांझां गरजे खोल, झंकार हुंकार घनघोर।।३।।

अवनि करे टल मल, नाचे प्रमत्त प्रवर, स्थावर जंगम कटि मत्त।
केवल ‘गो-गो’ करे, ‘रा’ बलिते ढले पड़े, देखि लोकेर चमत्कार चित्त।।४।।

अजस्र नेत्र धाराय, धोये जीवेर हृदय, जागाय तथा गौर रसराज।
फिरे जीवेर , दन्ते तृण गले वास करे, जीवबन्धु के एई महाराज?।।५।।

शिरे रक्त धारा बहे, तबु बुके धरि कहे, भज मोर गौरांग सुन्दर।
अधम पतित बन्धु, के एई करुणासिन्धु, जीव दुखे सदाई कातर।।६।।

बले “तोमार पाये पड़ि, मुखे बल गौरहरि आमि बिकाइव चिरतरे”।
के एई महान प्राण, मार खाये देन प्रेम, केंदे केंदे जीवेर द्वारे।।७।।

जय नित्यानन्द राम, सर्वानन्द सुखधाम, जय जय करुणा केतन।
संगे सब परिकर, प्रेमे मत्त महावीर, पाषण्ड दलने अग्रगण्य।।८।।

वसुधा जाह्नवा प्राण, पद्मा हाड़ाई नन्दन, हा हा वीर चन्द्रेर जनक।
अहैतुकी कृपागुणे, मत्तकैल जगत्जने, मोरे केने वाम चन्द्रमुख।।९।।

गौरांग मत्त मधुपेर, विचित्राद्भुत कमल, गौर वशीकरण महौषधि।
जय नित्यानन्द नाम, अखिल रसेर धाम, स्फुरुक जीह्वाय निरवधि।।१०।।

निताई पद बिकाइव, गौर-धन धनी हव, आस्वादिव युगलोज्जवल रस।
ब्रह्मा-शिवेर दुर्लभ, अचिरे हवे सुलभ, साधन बिना पूर्ण अभिलाष।।११।।

प्रेमे मत्त महाबली, डाके दुइ बाहु तुलि, ‘आय-आय के आछे पतित”।
आमार विश्वम्भर अवतारे, विलाइव अविचारे, प्रतिज्ञा भंग करिले वंचित।।१२।।

पतित के धरि कोले, भासे निताई नेत्र जले, बोले ‘बल-बल त्वरा करि’।
कोथाय के पतित आछे, यदि बाद पड़े पाछे, रुष्ट हवे प्राण गौरहरि।।१३।।

नाम-प्रेमे मातावार, दियेछेन अधिकार, प्रभु मोर करिया करुणा।
कांदिया निताई कय, यदि के वञ्चित हय, तांर नामे लागिवे कालिमा।।१४।।

प्रेमानन्दे मातोयारा, निशि दिशि जपे ‘गोरा’, पतितोद्धारे संकल्प एकान्त।
गौरप्रेम रसेर भाण्ड, माताल विश्व ब्रह्माण्ड, महिमाय गौरांग विस्मित।।१५।।

एइ एक अवतार, नाहिक विचार याँर, डुबाइते सबे मात्र जाने।
अनर्गल प्रेमवन्या, आनि धरा कैल धन्या, मत्त सबे प्रेमामृत पाने।।१६।।

हेन दयार ठाकुर, छांड़ि भजये आर, जनमिया से नाहि मैल केने।
हस्तेर चिन्तामणि छांड़ि, रजतपिछे मरे दौड़ी, धिक्-धिक् ए तार जीवने।।१७।।

पागल हयते यदि चाओ, पागलपदे शरणलओ, पागलनामे सदा करि रति।
दूरे यावे पाग्लामि, पावे पागलेर स्वामी, पागल प्रेमार परिणति।।१८।।

मुखे बले नित्यानन्द, प्रेमानन्दे हैया अन्ध, प्रवेश कर निकुञ्ज महले।
केनसाधन मर भाई, साधने किसे निधि पाइ, लभ्य केवल निताई कृपाबल।।१९।।

मन्दिर यार थाके बुके, तारा कि ठाकुर दूरे थाके, विहारभूमि निताई सुन्दर।
उदिले हृदय मांझ, छुटे गौर रसराज, भावोन्माद कराय विभोर।।२०।।

गौरागुणे झुरे झुरे, ब्रजलीलार प्रवेश करे, हइया श्रीराधिका किंकरी।
पुकारेशास्त्रमहाजन, नाहि २ आरगति आन, भज केवल निताइभाण्डारी।।२१।।

भाइरे तोदेर पाये पड़ी, बलि एइ कर जुड़ी, ना याईओ ओ पागल पाश।
लागिले तार वातास, हवे तोमार सर्वनाश, केंदे केंदे तरुतले वास।।२२।।

गौड़ पानीहाटि ग्रामे, कि मन्त्र पड़िल काने, रघुनाथेर ए कि दशा हैल।
महैश्वर्य परिहरि, आहार निद्रा त्याग करि, कुण्डतीरे काँदे निरन्तर।।२३।।

देखिते एत सुन्दर, अन्तरे महा-यादुकर, ओझार छेले महाइन्द्रजाली।
एकबार येदिके हेरे, डुबाय सचराचरे, सृष्टिकर्त्ता काँदे शिर धरि।।२४।।

यमेर द्वारे लागिल ताला, सबे प्रेमे मातोयारा, कोथा थेके एल अवधूत।
अद्वैत आचार्य वर्य, निमाइ पण्डितराज, सबार बुद्धि कैल विपरीत।।२५।।

महामाताल जगाइ माधाइ, नाचे ता ता थेइ थेइ, मद्यपराज अवधूत संगे।
नाचे ठाकुर हरिदास, आचार्यरत्न श्रीनिवास, गौरांग अद्वैत नाचे रंगे।।२६।।

विद्यार विलासभूमि, नवद्वीप ग्राम खानि, यत्र मता-मता अध्यापक।
से पागलखाना हल, यदवधि ए पागल एल, संख्या नित्य बाड़य अधिक।।२९।।

निरंकुश गजराज, प्रमत्त केशरी वर्य, गौरे बाँधिवार एइ फाँस।
निताई नाम कमल, फुटये हृदे याँहार, छुटये गौरा हइया लालस।।२८।।

गौरंगेर संकल्पसार, येइ बले एक बार, आमि निमाई पादपद्मदास।
गौर पहुँ कृपावान, तारे हन सुप्रसन्न, सेई पाय गौरांग अवश्य।।२९।।

रासविलासेर परिणति, राइकानु एकाकृति, युगलोज्ज्वल रसेर निर्यास।
सेई गौरेर अभिन्न देह, गौरांग सेवाविग्रह, निताइ अति निगूढ़ रहस्य।।३०।।

अनुरागे रक्तवर्ण, विह्वलेरअग्रगण्य, रसघोरे दिगम्बर भोरा।
घूर्णित नयनयुग, वर्षे गौर अनुराग, दिग्विदिग् नाहि आत्महारा।।३१।।

श्रीगौरांग प्रेमेर, सीमाहीन पारावार, अतीव गभीर अन्तहीन।
ताइ सदा विघूर्णित, भावतरंगे उद्वेलित, उन्मादना बाढ़े अनुक्षण।।३२।।

गौरांग माधुर्यार्णव, प्रतिक्षणे नव नव, बाढ़े यार नाहिक अवधि।
आस्वादे, निताई महाभाग, नवनव अनुराग, मिलित माधुरी गोरानिधि।।३३।।

गौरांग प्रेम आधार, प्रभु निताई सुन्दर, ताँर पद आश्रय जे करे।
पाय युगल प्रेमरस, प्राण गौरांगे करे वश, सदा सेवा समुद्रे साँतारे।।३४।।

छार माया किवा तार, निताइ सर्वस्व यांर, मग्न सदा गौर प्रेमार्णवे।
कृतार्थ करे जीवन, धन्य करे त्रिभुवन, अधिकारी सेइ गोपीभावे।।३५।।

नाचे निताई सुन्दर, नाचे चूड़ा मनोहर, नाचे कर्णे मकर कुण्डल।
नाचे रक्तनेत्रद्वय, अखिल मर्महरय, गले दोले वैजयन्ती माल।।३६।।

कटिते किंकिनी बाजे, माताय गोरा रसराजे, पाये बाजे नूपुर रसाल।
नाचे निताई नटराज, गाहे भकत समाज, बाजे मधुर खोल करताल।।३७।।

करुणार धारा बय, जीवेर भाग्ये समुदय, ये ना करे से धाराय स्नान।
सेइ महामन्दमति, तार कभु नाइ गति, सेई पापी जीये कि कारण।।३८।।

करिवर शुण्ड जिनि, बाहुयुग सुबलनी, हेमदण्ड ताहाते शोभय।
नील पट्ट परिधान, विद्युत मदाभिमर्दन, अंगकान्ति सदावृद्धि पाय।।३९।।

सुरधुनि तीरे तीरे, विहरे सपरिकरे, धन्य धन्य पानिहाटि ग्राम।
वसाये प्रेमेर हाट, करे कत रंगे नाट, आकर्षिया गौर गुण धाम।।४०।।

नाचे निताई सुन्दर, स्तब्ध सब चराचर, वरिषये पुष्प देवगण।
ब्रज सखागण माँझे, यैछे दाऊदादा साजे, तैछे लीला भुवनमोहन।।४१।।

मुखपद्म नेत्रपद्म, नाभि-कर-पाद-पद्म, अंगे अंगे चाँदेर बाजार।
पद्मचाँद एकठाँई, आनन्देर अवधि नाइ, विवर्त्त विलास रंगाधार।।४२।।

कबे से सौभाग्य पाव, नदीया, नगरे याव, बेड़ाइव भिक्षुलि धरि।
नदीयार राजपथे, जीवे संकीर्तन मेते, देखिव कि नेत्रयुग भरि।।४३।।

वीरचन्द्र रामचन्द्र, आर यत भक्तवृन्द, श्रीगुरुराम श्रीराधारमन।
हइया परम प्रीत, करि लवे अनुगत, पूर्ण हवे सर्व मनस्काम।।४४।।

प्रसादीर माला मोरे, दिवे कि आपन करे प्रभु निताई करुणार खानि।
अति उललास अन्तरे, दिव गुरुदेवेर गले, स्वप्रसादी दिवेन आपनि।।४५॥

महाप्रचण्ड प्रलय, प्रतिक्षणे वृध्दि पाय, ताते तूफान अति भयंकर।
कैल जगत् छारखार, ना रहिल सत्ताकार, घनघोर वर्षा अनिवार।।४६॥

नवद्वीप सरोवरे, स्वर्णपद्मद्वय खेले, भाव बातासे सदा ढलमल।
भकत भ्रमर शत, पिये मधु अविरत, तबु तृष्णा बाढ़े निरन्तर।।४७।।

निताइ गौरांग नाचे, संकीर्त्तन रास रचे, सन्मुखे गर्जये सीतानाथ।
नरहरि गदाधर, दक्षिण वामे मनोहर, मण्डलाकारे भक्त अगणित।।४८।।

रसराज महाभाव, एकाधारे आविर्भाव, नदीया विहारी गौरहरि।
ताँर भाव अनुकूल, सेवा करे निरन्तर, अभिन्न तनु निताई श्रीहरि।।४९॥

पिये गौर प्रेममद, सदाइ उन्माद अन्ध, उत्तम अधम नाहि वाछे।
लक्ष्मीर अप्राप्य प्रेम, वैकुण्ठ अज्ञात धन, अविचारे हारे द्वारे याचे।।५०॥

अत्याधिक करि पान, निरन्तर हृतज्ञान, विधि निषेधातीत व्यवहार।
कभु उठे कभु पड़े, कभु भासे गंगानीरे, कभु नाचे हये दिगम्बर।।५१॥

गौरांग रसागर, गौरांग रस आगर, श्रीगौरांग चाँदेर चकोर।
प्रेमे मत्त महाबली, चले दिग् विदिग् दलि, गौर प्रेम रसेर बादर।।५२।।

करे धृत लौहदण्ड, गर्व करे खण्ड खण्ड, कलिराजे करि पदानत।
पूर्वलीलाय हलधर, कभु से भावे विभोर, सुदुर्बोध निताई चरित।। ५३॥

गौर अवतंस काने, जिह्वा गौरनाम गाने, गौर बिना ना देखे नयने।
गौरांग सर्वस्वसार गौरांग प्राण आधार, श्रीगौरांग रमे अविरामे।।५४॥

नाहि यार ओर पार, ब्रह्मा शिवेर अगोचर, जीव छार काहा पावे अन्त।
गरजन निरन्तर, क्षीरार्णवे यैछे मन्दर, निवर्ध्दमान उर्मि शत शत।।५५।।

नित्यानन्द दासेर दास, ताँर आशु पूरे आश, हा हा राम श्रीराधारमन।
दिये श्रीचरण स्पर्श, करिले मोरे हताश, दुःखे मरि लैल साधपूर्ण।।५६।।

प्रभु राधारमन राम, विचित्राद्भुत कल्पद्रुम, जय जय महिमा अपार।
पेये से चरन धन, वञ्चित शेखराधम, दिने दिने कुमति प्रबल।।५७।।

कहे रामकृष्ण भजे, केह गोरा नटराजे, केह भजे वृन्दावनेश्वरी।
शेखरेर जीवन प्राण, प्रभु नित्यानन्द राम, सत्य सत्य बलि बाहुतुलि।।५८।।

सम्प्रदाय साधुशास्त्र, सबारे मोर दण्डवत, सबे देह एइ शुभाशीष।
प्रभु नित्यानन्द राम, हओक सर्वस्व मम, अन्यत्र ना चलुक मतिलेश।।५९।।

कारो कथा ना शुन मन, भज नित्यानन्द राम, तुमि अपराधी बहिर्मुख।
हेन दयाल नहि आर, केन्दे केन्दे करे पार, दीने हीने करुणा अधिक।।६०।।

डुबाय प्रेम पारावारे, किम्वा विष दिया मारे, तबु निताई मोर प्राणपति।
सबार पदे निवेदन, सबे देह एइ दान, ओ चरणे बाढ़े येन रति।।६१।।

हय नाहि आर हवार नय, हेन प्रेमदाता महाशय, यारेतारे विलाय प्रेमधन।
मार खेये प्रेम याचे, एमन दयाल आर के आछे, विने प्रभु नित्यानन्दराम।।६२।।

दन्ते तृण गले वास करि, निवेदिये पाये पड़ि, भज भज ए हेन ठाकुर।
सर्वदुःख हवे नाश, पाइवे परमोल्लास, लुटिवे गूढ़ प्रेमेर भाण्डार।।६३।।

गोलोक गुप्त प्रेम, साधन दुर्लभ धन, ब्रह्मा शिवादिर अगोचर।
हेनसे निगूढ़प्रेम, आचाण्डाले करिते दान, निताई बिना केवा आछे आर।।६४।।

हे हे तार्किक बुद्धगण, किवा कर संकथन, हे हे साधु संन्यासी वैष्णव।
आमि कारो कथा न शुनिव, निताईपदेबिकाइव, निताइ केवल पतितबान्धव।।६५।।

हे साधु वैष्णवगण, तोमरा सामर्थवान, तोमादेर प्रचुर आछे अर्थ।
उपयुक्त मूल्यदाने, यथा तथा लवे किने, भरसा मोर निताई सदाव्रत।।६६।।

नित्यानन्द सरोवरे, गौरांग कमल खेले, राधाकृष्ण मकरन्द पूर्ण।
निताई आश्रय फले, यारे गौरांग मिले, तार कि वाकि युगलचरण?।।६७।।

अन्य कर्त्तृक अदत्त, वैकुण्ठ अलभ्यवित्त, प्रेमावतार गौर अवतरि।
हेन सुदुर्लभ प्रेम, यारे तारे कैल दान, भाई निताई के आज्ञा करि।।६८।।

दृष्टजन संहारिते, भक्तजन उद्धारिते, एसोछले सब अवतार।
अहिंसा व्रत आचरि, प्रेमे निताई गौरहरि, जागाइल स्वरूप सवार।।६९।।

यार गले छिल माया फाँसि, ताँरे कैले राधादासी, बलिहारी करुणा प्रबल।
स्थावर जंगम यत, करिले प्रेमे उन्मत्त, ए ये स्वरुप जागान अवतार।।७०।।

प्रभु निताई प्राणगौर, रसे तनु ढर ढर, महिमाय केवा पावे अन्त।
भुवन पावन गुणे, बुझये जढ़ जंगमे, हवे कि गोचर दृष्टि पथ?।।७१।।

भुक्ति मुक्ति करि दान, ना दिये ये गूढ़ प्रेम, रसमय किशोरी किशोर।
हेन प्रेमागार द्वार, खुले दिल निताई आमार, घरे घरे प्रेमेर पाथार।।७२।।

रसिक भजे रसधाम, श्रीराधा राधारमन, भकत भजये भगवान।
शेखरेर जीवन प्राण, प्रभु नित्यानन्द राम, बाना यार पाखण्ड दलन।।७३।।

मायार दासत्व करि, बहु जन्म गेल चलि, ए जन्म याओक निताई नामे।
निताई हओक धनप्राण, रहूक हृदे अविराम, झुरि झुरि मरि निताई गुणे।।७४।।

अद्यापि नित्यानन्द राय, श्रीगुरुरुपे विहरय, नाम प्रेमे माताय जगत।
उथलिल प्रेमसिन्धु, ना पाइया एकविन्दु, कर्मदोषे रहिनु वञ्चित।।७५।।

प्रभु निताई प्रेम याचे, मूक गाय पंगु नाचे, जय जय महिमा प्रचण्ड।
देखेर कृपा अखण्ड, भग्न कैल प्रभु दण्ड, भासाये दिल करि तिन खण्ड।।७६।।

सिंहेर गर्जन धाय, प्रमत्त करीन्द्र प्राय, अंगच्छटाय जगत उजोर।
परिसर वक्षस्थल, शिरे कुटिल कुन्तल, क्षीण कटि किवा मनोहर।।७८।।

गौरकृपा मूर्त्ति धरे, निताई रुपे विहरे, आचाण्डाले धरि देय कोल।
गौरेर असाध्य काम, समाधाने सुनिपुण, आज्ञापालने परम चतुर।।७८।।

दामिनी दर्पमन, रुप जिनि कोटि काम, उठे सौन्दर्य माधुर्य लहरी।
नाना रत्न अलंकार, प्रति अंगे चमत्कार, बले लय सर्व चित्त हरि।।७९।।

मुखे समधुर हासि, उगारे सुधा राशि, डुबाइल सकल संसार।
पिये अमिया अखण्ड, मातिल पाषण्ड भण्ड, जय जय ध्वनि अनिवार।।८०।।

निताई अनन्तरुपे, सेवे गोरा रसभूपे, भोज्य, पेय बसन, भूषण।
पादुका, छत्र, चामर, सखा, सखि, परिकर, पुष्पशय्या, रत्नसिंहासन।।८१।।

निताई कुञ्ज कुटिरे, रसराज गौरांग खेले, विलास मंदिर नित्यानन्द।
विलासी गौर करि बुके, सदा मग्न सेवासुखे, श्रीकृष्णचैतन्य गूढ़ रंग।।८२।।

नित्यानन्द पारावारे, डुबाओ मोरे बलात्कारे, हा हा गुरु करुणार सीमा।
कुलाधिदेव निताई बलि, गरव करि सदाइ फिरि, उड़ाइया विजयेर बीना।।८३।।

प्रभु राधारमण राम, रमु हृदि अविराम, हा हा निताई पुराओ एइ आस।
गौरगणेर पदधूलि, शिरे धरि इमे बलि, पान करि प्रेमेर निर्यास।।८४।।

प्रभु नित्यानन्दगण, केवल करुणाधाम, भुवन पावने दृढ़व्रत।
निन्दुक पाषण्डी यत, कृपाये हये समर्थ, दृष्टिमात्रे तारिले जगत्।।८५।।

नित्यानन्द परिकर, परमाश्चर्य गुणधर, दुइ लीलाये पूर्ण अधिकार।
भावे भावे व्रजलीला, सरसात् गौरसने खेला, विचित्राद्भुत महिमा भाण्डार।।८६।।

बाजे मधुर मृदंग, नाचे प्रभु नित्यानन्द, टलमल अनन्त ब्रह्माण्ड।
गाय माधव वासु घोष, नाचे गदाधर गौरीदास, अभिराम प्रेम प्रचण्ड।।८७।।

सदर्पे निताई चले, गौरहरि हरि बले, नेत्रे बहे शत शत धार।
हेमदण्ड बाहु तुलि, नाचे पहुँ फुँली फुँली, सुरधुनि तीर उजोर।।८८।।

भाइरे कानाई बलि, कभु काँदये फुकारि, कभु गौरेर धरये चरण।
कभु दाँड़ाये वाम पाशे, गौरंगवल्लभावेशे, निताई सर्वरसेर सदन।।८९।।

कलिदर्प विभञ्जन, अखिल जनरञ्जन, दयामय जगहितकारी।
एसेछे नदीयापुरे, अनर्पित दानेर तरे, सबे हैल प्रेम अधिकारी।।९०।।

गोपीभाव गोपीप्रेम, वेदादिर अगम्य, व्यास सनकादि याते भ्रान्त।
हेन प्रेम रसार्णवे, पतित पाषण्ड डुबे, बलिहारी निताई महत्व।।९१।।

यार छाया स्पर्शे गंगास्नान, से हैल जगपावन, मातिया माताल त्रिभुवन।
हेन कृपार उपमा नाइ, तार उपमा तार ठाँई, मूक हैल वाग्देवी वचन।।९२।।

आनिया प्रेमेर वन्या, अवनी करिल धन्या, डुबाइल भासाइल जगत्।
दीन दुर्गत कांगाल, लुटे प्रेम निरन्तर, नाचे गाये येन मदमत्त।।९३।।

कोटि जन्म संकीर्त्तने, कृष्ण ना करे प्रेमदाने, अपराध विचारे कृष्णनाम।
निताई गौरांग नाम, अपराध विचारशून्य, प्रेमदाने परम प्रवीन।।९४।।

वरं अपराधी देखि, विशेष सजल आँखि, निगमागम अगम्य महिमा।
बाहुपसारि धरिकोले, डुबाय प्रेम पारावारे, चाँदनिताई ना जानये घृणा।।९५।।

अदृश्य अस्पृश्य बले, जगत् यारे ठेले फेले, प्रभु निताई तारे बुके धरे।
भयनाहि आमि आछि बले, वयान भासे नयान जले, बिकाय प्राणगौर पदतले।।९६।।

अन्ध मूक पंगु जन, सबारे करिला पार, केंदे डाके दु बाहु तुलिया।
“के यावि भवेर पारे, आय आय त्वरा करे, एसेछे मोर गौर विनोदिया”।।९७।।

करिया मन विचार, ये यह उचित कर, निताई बिना नाहि नाहि गति।
प्रति पदे अपराध, ना जानि कत शत शत, ताहा हइते नाहिक निष्कृति।।९८।।

महारत्न हाते पेये, केन छाड़ चतुर हये, निताई पद सदा कर आश।
मायामुग्ध कलिहत, साधने मोरा असमर्थ, असाधने पूर्ण अभिलाष।।९९।।

गृहे महानिधि छेड़े, के गिये अरण्ये फिरे, अहंकारे हइया विभोर।
पाये पड़ि छाड़ भ्रम, भज नित्यानन्द राम, यदि वाञ्छ युगल विहार।।१००।।

हा हा नित्यानन्द राम, मुखे बल अविराम, लोकापेक्षा दूरे परिहरि।
नित्यानन्द भक्त संगे, निताई लीला प्रसंगे, मेते थाक दिवस शर्वरी।।१०१।।

यदि काँदिवे निशिदिन, तबे पावे राधाश्याम, साधनांगे हये सुनिपुण।
किन्तु ये मोदेर तरे, केंदे केंदे दिते फिरे, ना भज केन ओ राँगाचरण।।१०२।।

उन्नत उज्जवल प्रेम, करिते सब वितरण, एसेछे एबार प्रतिज्ञा करिया।
हायरे कपाल मन्द, विषये हइनु अन्ध, ताँरे छाड़ि रहिनु भुलिया।।१०३।।

हा हा प्रभु नित्यानन्द, हा हा प्राण गौरचन्द्र, हा हा प्रभु प्रिय परिकर।
ए दीन दुर्गत जने, चाह हे कृपा नयने, उपस्थित आसि अन्तकाल।।१०४।।

एकबार दिये देखा, कर दुःखीरे रक्षा, निशि निशि ज्वलितेछे हिया।
यारा सुखेर संगी छिल, ताँरा सब छारे गेल, केन आछे एइ अभागिया।।१०५।।

ब्रह्म शिव अनन्त, याहार न पाय अन्त, अपार अगम्य ये महिमा।
दग्धप्राण जुड़ावार तरे, गाइनु किछु स्वल्पाक्षरे, धृष्टतार अवश्य दिवे क्षमा।।१०६।।

गिरि गोवर्धन तटे, यतिपुरा सन्निकटे, सुखमय कदम्ब कानने।
महत् पाद पद्म धूलि, लेखाइल कृपा करि, प्रभु नित्यानन्द जन्मदिने।।१०७।।

शचीसुत विशवम्भर, परि एइ रत्नहार, हये दीन शेखरे प्रसन्न।
श्रीगुरुदेवेर आनुगत्य, दिये कर आत्मसात्, पाये येन निताई चरण।।१०८।।

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