दुर्लभ रस स्थियी

*जय जय राधिका माधव*

       *दुर्लभ रस स्थिति*

*कहिये कृष्णकथा मनभायी, सुनिये कृष्ण चरित चित लायी।*
*जपिये कृष्ण नाम सुखदायी, लहिये प्रीति अधिक अधिकायी।।*

*जय जय राधिका माधव ।*

    सघन घनों की छाया में विराजित युगल रसीले आज किसी अभिनव वार्ता में मग्न थे। शीतल समीर की झकोरे उन नन्हें-नन्हें पुष्प पल्लवों को छेड़, भीतर आ, इन रसाराध्य के कमल-कोमल वपु का स्पर्श कर, प्रियाजी के नीलाञ्चल को लहराती हुई इठलाती-मदमाती....लौट जाती; फिर आती; फिर उन दोनों में नव-नव कामनाओं की त्वरा को उकसाती ; फिर... उन्हें एकान्तिक सुख में बोर, नृत्यनिरत हो जाती...।।प्रिया के कर किसलय को अपने मृदुल पाणिपल्लव से सहलाते हुए प्रणय-प्रवीण प्रियतम ने कुछ कहा; फिर उनकी चिबुक उठा, उनकी मदभरी, सरसीली नयन प्यालियों में.......अपने विशाल नयन कटोरों से न जाने कौन सा आसव उँडेला कि प्रणय विवशा प्रिया के नयन मुद्रित से हो गए, उन अर्द्धमुद्रित लोचनों पर पीयूषवर्षण कर प्रियतम ने किसी नवल रसावतारणा की भूमिका बनाते हुए फिर कुछ कहा।।

     प्रिया के उर की धड़कन को अपने उरस्पन्दन में भरने को विकल रसनिधि ने, न जाने क्या चपल चेष्टा की, कि वे पहिले तो तनिक सिहरीं, चौंक और......फिर तनिक पीछे को हट.......। हटती हुई प्रिया को रसज्ञ प्रियतम की.......बलिष्ठ बाहु ने थाम लिया।.......बाई भुजा से प्रिया को थामे, दक्षिण कर सरोज उन्होंने प्रिया के मधुर रसकोष पर स्थापित किया। कोमलाङ्गी किशोरी की वह रसपगी रस निमज्जित.......स्थिति ! वह एकबार जोर से झनझना उठीं, फिर प्रयत्नपूर्वक सँभलीं और तुनक कर.....उसे मधुपाश से विफल चेष्टा की,.......उन रसाधीन-रसातुर पुरुषकेशरी ने.....।

       इतने में ही घटाएँ और घिर आई, सहसा गम्भीर मेघगर्जना हुई।कमनीयता, रमणीयता की वह सरस प्रतिमा भीत सी हो गयी। कोमल गात में तनिक कम्पन सा हुआ। रसनिलय प्रियतम को सुअवसर मिला......।अवसर का लाभ उठाने में अतिनिपुण......रसविदग्ध प्रियतम ने ,क्या पता अब फिर क्षण भर में ही कौन सा रसापराध कर दिया, कि प्रणय-भीता किशोरी कुछ निर्भीक सी हो, उस प्रणयदाम से छूटने का अनिइच्छित प्रयास करने लगीं। प्रियतम के मधुर मुख पर मृदुल मुस्कान किसी नवल रसचेष्टा को दुलारती सी, पुचकारती सी उभर आई.......।।

    रस मन्दिर की मङ्गल स्थली......पर वह मुस्कान माधुरी समर्पित कर....... रसरणबाँकुरे प्रियतम ने पञ्च पुष्पशरों द्वारा पूजन किया, मधुर अर्चना की, रस नैवेद्य चढ़ाया। फिर उनके मधुर-मृदुल अरुणाधर फड़के।एक अति कोमल झङ्कार सी हुई। उन रसाकांक्षी पुजारी ने........क्या पता
कौन सा रसस्तवन गान किया, फिर कौन सी सरस याचना की......।किशोरी प्रणयिनी के मधुर अधरों पर सङ्कोच स्नात सुन्दर स्मित विक्रीड़ित हुई। उस सूक्ष्म स्मित रेखा पर......उन रसमत्त श्यामल किशोर ने अपनी सम्पूर्ण रसमाधुरी लुटा दी; रोम-रोम से......प्रणयिनी प्रिया के रोम-रोम को अशेष रस सामग्री भेंट की रसमर्मज्ञा-रूपसी राधिका अब पूर्णत:विवश हो गयी थी, पर फिर भी.......एकबार नकारात्मक हुङ्कार भरी और तनिक सा सरकने का असफल प्रयास भी किया। उसी समय.....मेघमण्डल के वक्षःस्थल में दामिनी दमक उठी, उसकी कौंध से चकाचौंध और भीत राधिका...उन प्रणय प्रवीर.... उन नीलसुन्दर से लिपटी स्वर्णाभ सौदामिनी !....उस विशाल वक्ष:स्थल में समायी बह रसतरङ्गिणी.....! प्रियतम की मनचाही को मनमाना सुयोग, सहज सुलभ हुआ। उस सुलभता की दुर्लभ रसस्थिति ने.......दुर्गम मदनघाटी के द्वार को उन्मुक्त कर दिया।......उस एकान्त के नीरव वातावरण में उन्मुक्त रस लूट मचाते वह मदोन्मत्त रसलुटेरे प्रियतम.....! सब रोकथामों की सीमाओं का अतिक्रमण कर, प्रियतम की रसत्वरा, रसमग्नता......आज निर्बाध थी.......। रस कलह की उस धूम में.......अबला प्रिया की......रस उमगन सङ्कोच की सुदृढ़ परिधि को लाँघ......आज इतनी सबल हो गयी थी कि......। रस के उद्दाम वेग पर कोई प्रतिबन्ध न था।....दोनों ओर ही उत्ताल रसतरङ्गों की भीर थी.......दोनों ओर मद की उन्मत्त चेष्टाएँ पूर्ण सजग थीं।.....रस सम्पदा...... विलस रही थी........। रसनिधि उमड़ रहा था। रस की उद्दाम वेगवती धाराएँ उच्छलित थीं, उच्छलित रहीं......कब तक........कौन जाने ?

    अङ्ग-प्रत्यङ्ग के प्रणय प्रवाह का मापतौल कौन करे?.....विलसित रसश्री से सम्पन्न वह निभृत निकुञ्ज पुलक रही थी.........।

*जय जय राधिका माधव*

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