लीला विहार(यशु)

*बिष्णुप्रिया जु विहार भाव लीला*

गज मुक्ता सी वो चाल जैसे रूप निहाल, मद्धम मद्धम सी बारिश में उनका यूँ भीगे बदन में हमारे करीब आना जैसे जैसे जल में आग लगा जाना, भीगा पीताम्बर को अपने कटि प्रदेश से धीरे से सरका देना मानो किसी अप्सरा का रूप भी सिमट जाना, वो ठंडे बदन से गरम गरम सांसो की फुहार जैसे अभी अभी किसी ने राग मल्हार में राग दीपक छेड़ दिया हो। मादमस्त से वो नैन जैसे मधु सागर।

आज हमारे श्री गौरांग जिद्द पर अड़े हैं कि विहार पर जाना है, परंतु उनको कैसे संमझाये हम की आज माँ की तबीयत कुछ नासाज है ऐसे में हम कैसे माँ को छोड़ इनके संग नौका बिहार पे चली जाए, पंन्तु हृदय आवाज दिया है कि जा आज ये मौका स्वयं प्रियतम प्राण गौर दे रहे हैं, वे प्राण नाथ है उनकी आज्ञा टाल करना हमारे बस में नही।परंतु परन्तु ,,,,

सुन जो पश्चिम द्वार वाला कक्ष है उसमें जो स्वर्ण रजत पात्र रखा है जरा ले के तो आ आज हमको श्री प्राण गौर की भेंट की हुई लाल पाग वाली ही वस्त्र धारण करा

अच्छा पर काँचना तू कैसे जानेगी तू तो कभी हमारे वस्त्र भंडार में गयी है ना है

एक काम कर ईशान को डाक जरा

बोल हमने याद किया है

वो हमारी सब जगह से वाकिफ है

और प्रभु की भी

जा अब देर मत कर प्रभु किसी भी समय गंगा स्नान करके आते होंगे

जा के हमारा वन हिन्दिर निकाल हमको भी गंगा स्नान को जाना है

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