महामन्त्र

हरे कृष्ण महामंत्र 

*"हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।"*

इस महामंत्र में जो राम शब्द हम बोलते हैं वह राम नाम मर्यादा पुरूषोत्तम राम यानि जो दशरथनन्दन राम हैं उनके लिए नहीं है। श्री कृष्ण का भी एक नाम राम है। ब्रह्माण्ड पुराण वेदव्यास जी द्वारा रचित 18 पुराणों में से एक है।
ब्रह्माण्ड पुराण उत्तर खण्ड 6अध्याय 55वें श्लोक में-

*वैदग्धी सारसर्वस्व मूर्तलीलाधिदैवतं।*
*श्री राधां रमय नित्यं रामित्यभिधीयते।।*

जो चतुर शिरोमणि हैं जिनसे बढकर चतुर कोई नहीं है। जो मूर्तमयी लीला के रसमयी अधिष्ठाता हैं। जो अपने परम धाम वृंदावन से जो सारे जगत, सारी सृष्टि से परे है। इस धरती पर अवतरित होते हैं। और अपनी गोलोक वाली रसमयी लीलाओं का प्रदर्शन करते हैं जो संसार के लिए अज्ञात थी। ऐसे भगवान श्री कृष्ण राधा रानी को नित्य रमण कराते हैं अर्थात क्रीडा कराते हैं। गोपाल तापनी उपनिषद एक वेद है एक श्रुति है उसमें बताया गया है कि राधा रानी भगवान की ह्रलादिनि शक्ति है आनन्द प्रदायिनी शक्ति है। आध्यात्मिक क्रीडा जो जड बुद्धि की समझ से परे है। राधा रानी के साथ मधुर रस की विभिन्न प्रकार की क्रीडा करते हैं। ऐसे श्री कृष्ण ही राम नाम से जाने जाते हैं। क्योंकि श्री कृष्ण का ही एक नाम राम है। यह भगवान वेदव्यास जी ने ब्रह्माण्ड पुराण में बताया है। तो इस महामंत्र में जो राम है वह मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए नहीं बल्कि स्वयं भगवान श्री कृष्ण के लिए है।
भगवान राम से भी पहले राम नाम श्री कृष्ण का है। आप लोग सोचते होगे कि राम जी का अवतार तो त्रेतायुग में हुआ था और श्री कृष्ण अवतार द्वापरयुग में हुआ था। तो राम जी पहले आए और श्री कृष्ण बाद में आए। तो श्री राम से पहले श्री कृष्ण कैसे हो सकते हैं???
जैसे सोमवार, मंगलवार, बुधवार आते हैं तो क्या ये एक ही बार आते हैं???
एक बार सोमवार आने के बाद क्या दोबारा नहीं आएगा???
8 दिन के बाद फिर पुनरावृत्ति होती है। सोमवार फिर आएगा, मंगलवार फिर आएगा। अगर कोई व्यक्ति कहे कि सोमवार के दिन राम जी आए थे और मंगलवार के दिन कृष्ण जी आए थे। तो राम जी पहले आए और कृष्ण जी बाद में आए। तो खाली इससे काम नहीं चलेगा कि सोमवार को आए मंगल को आए तो यह भी बताना होगा कि कौन से सन् में कौन से महीने में आए। क्योंकि वार तो लगातार आते रहते हैं। राम जी त्रेता में आए थे तो कौन से त्रेता में आए थे। क्योंकि त्रेतायुग भी बार बार आता जाता रहता है। श्री कृष्ण द्वापर में आए थे तो कौन से द्वापर में आए थे।
*" सहस्त्रयुगपर्यन्तमहर्यद् ब्रह्मणो विदु:"*
भगवदगीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि ब्रह्मा जी का 1 दिन इतना बडा है जब ब्रह्मा जी का दिन होता है तब तक इस पृथ्वी पर चार युग 1000 बार घूम जाते हैं।
सतयुग- 17,28000 वर्ष का होता है
त्रेतायुग- 12,96000 वर्ष
द्वापर- 8,64000 वर्ष
कलियुग- 4,32000 वर्ष का होता है।
जब कलियुग समाप्त होगा फिर सतयुग आ जाएगा। सतयुग के बाद त्रेता , त्रेता के बाद द्वापर और फिर कलियुग। तो इस प्रकार चतुर्युग की पुनरावृत्ति हो रही है। फिर कैसे पता चलेगा कि कौन सा चतुर्युग कब आया???
उसके लिए काल गणना है मन्वंतर। ब्रह्मा जी के एक दिन को 14 भागों में बॉटा गया है। 71 चतुर्युग को एक मन्वंतर कहते हैं। इस वक्त जो मन्वंतर चल रहा है वह है वैवस्वत मन्वंतर। और वैवस्वत मन्वंतर का 28 वां चतुर्युग चल रहा है। और इस चतुर्युग में युग चल रहा है कलियुग ।अभी कलियुग के लगभग 5200 वर्ष बीते हैं । श्री कृष्ण का अवतार कब हुआ???
वैवस्वत मन्वंतर के 28 वें द्वापर के अंत में।
ये जो कलियुग है इससे ठीक पहले जो द्वापर था उसमें। तो श्री कृष्ण अवतार से एक युग पहले नहीं अनेक युगों पहले राम जी का अवतार हुआ था। राम जी कल्प अवतार हैं। एक कल्प में एक बार धरती पर आते है। धरती पर आने से पहले राम जी अपने साकेत धाम में रहते हैं। साकेत धाम एक वैकुण्ठ है। जो इस मृत्यु लोक से परे है।

जिस लोक में हम रहते हैं यह है भू लोक।इससे ऊपर है भूर्वलोक, उससे ऊपर स्वर्ग लोक, उसके ऊपर मर्हलोक, उसके ऊपर जनलोक, जनलोक के ऊपर तपलोक, तपलोक के ऊपर ब्रह्मलोक, ब्रह्मलोक के ऊपर सिद्धलोक, सिद्धलोक के ऊपर हैं वैकुण्ठ। और इन वैकुण्ठों में से एक है साकेत धाम। भगवान राम वहीं से आते हैं और वहीं चले जाते हैं।
वे आते कब हैं- 1000 चतुर्युग में एक बार।
श्री कृष्ण आते है गोलोक वृंदावन धाम से। और जाते भी वहीं है।
यह गोलोक वृंदावन साकेत के ऊपर है। यह वर्णन मिलता है पद्म पुराण में, उपनिषदों में, वेदों में। भागवत में,गीता में भी इन लोकों का वर्णन है।
तो श्री कृष्ण आते है गोलोक धाम से। गोलोक वृंदावन मूल धाम है , मूल लोक है जहॉ से सारे लोक प्रकट हुए हैं। वह गोलोक वैकुण्ठ से ऊपर है और वैकुण्ठ से भी पहले है।

वैकुण्ठ गोलोक से प्रकट है।
जैसे साकेत गोलोक से प्रकट है वैसे ही श्री राम भी श्री कृष्ण से प्रकट हैं। तत्व से दोनों सच्चिदानंद हैं। कोई भेद नहीं है। लेकिन गुणों में, शक्तियों में और कारण रूप में श्री कृष्ण ही सर्वोपरि हैं।
   यह बात केवल भागवत में ही नहीं बल्कि अनेक शास्त्रों में गुप्त रूप से लिखी हुई है। श्री कृष्ण के गोलोक वृंदावन में रहते हुए ही उनका एक नाम राम है। श्री राम जी का जो नाम है राम वह श्री कृष्ण से ही आया है। यहॉ पर राम और कृष्ण कल्पावतार के रूप मे हैं। राम जी 1000 चतुर्युग मे एक बार धरती पर आते हैं। श्री कृष्ण जी भी 1000 चतुर्युग में एक बार आते हैं।
   तो यह निर्धारित नहीं हो सकता कि कौन पहले आया कौन बाद में। क्योंकि इससे पहले कल्प में या उससे पहले कल्प में राम जी पहले आए या कृष्ण जी पहले आए इसका शास्त्रों में वर्णन नहीं है।  तो पहले आने से सर्व कारण कारण सिद्ध नहीं होता। पहले उपस्थित रहने से होता है।
   श्री कृष्ण की उपस्थिति सनातन है।
सर्व कारणों के कारण के रूप में श्री गोलोक वृंदावन में। तो श्री कृष्ण का ही नाम राम है। उनसे ही यह नाम मर्यादा पुरुषोत्तम राम को मिला है। क्योंकि राम जी का स्वरूप श्री कृष्ण से आया है तो राम नाम भी श्री कृष्ण से आया है। सब कारणों के कारण श्री कृष्ण है, श्री राम जी का रूप उनका धाम और उनका नाम सब श्री कृष्ण से ही प्रकट है।
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