विष्णुप्रिया जु विरह क्रन्दन(यशु)
*बिष्णुप्रिया जु विरह क्रन्दन*
ओ जोगी रे ,रुक तनिक सुनता जा , विरह की व्यथा, प्राण सनेही जीबन धन, मोहै तज के जइयो न,
जोगी अपनी विष्णुप्रिया को, यूँ रुलाइएओ ना, छेड़े जाइए ना, अमाके तुमि छड़े जॉइओ न।
वो मंदप और वेदी, वो अग्नि की साक्षी में फेरे, सप्तपदी के सात वचन क्यों भुला साजन मेरे।।।
एमोन्न कोरे छेड़े जॉइओ न
मुखड़ा मोड़ गृहस्त आश्रम से, बन के चला तू जोगी,
जब तक मैं बंधन में रहूंगी, तेरी मुख्ति कैसे होगी,,,
धर्म कर्म की सहभागिनी को यूं बिसरायी न।तज के जइयो न
ओ जोगी रे ,रुक तनिक सुनता जा , विरह की व्यथा, प्राण सनेही जीबन धन, मोहै तज के जइययो न
आह ओरा चोले जाची
की कोरे पाबौ
आमार प्राण जाची आजके
क्यूँ मधुबन को ठुकराते हो, ज्यूँ जल में आग लगाते हो,
आज की रात बड़ी बेदर्दी है।
यूँ निर्बल पर यूँ जुल्म न कर , ये पल जो गया सो न आएगा, पीले जो मधु नैनो से तो स्वर्ग यही बन जायेगा,
जिसके संकेत पे थिरकते जीवन, उसके है बस में मेरे मन,
ये जीत न है हार मेरी।
हम तो जी भर के आज नाचेंगे, ताल और सुर में रंग भर देंगे,
ऐसे रंग भरने से बेरंग है भले,,
न शब्दो के तू तीर चला, है प्रेम है प्रेम की परिभासा
आज की रात बड़ी मतवाली है,
बड़ी बेबस बड़ी है काली है,
हम लुटाउएँगे यौवन की कलियाँ,
बिरह के दलदल की अब सब खुशियां,,
मेरी भग्य में है ये अभिसाप मेरा,
जानेगा तो होश चला जायेगा।
आमि खूब अभागन, आमार मोतुंन केई ना
ओम श्री कृष्ण चैतन्या नमः
श्री गौरांग के चरणों मे हैं मेरे सारे धाम रे, भज गौरांग कह गौरांग लह गौरांगेर नाम रे।
यूँ ही बीत न जाये प्रभु मिलन की बेला, ढल न जाये शाम, उजड न जाये मेला,
आमार गौरांग
सुद्धू आमार
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