4

श्रीराधा कृष्ण की मधुर-लीलाएँ

श्रीप्रेम-प्रकाश-लीला
निरंतर................
(श्रीकृष्ण कूँ श्रीजी की गोद में दैनौं नंदराय खिरक में जायँ)
समाजी-
(दोहा)
कमल-पुंज के कर-कमल दीयौ कमल गहाय ।
बूड़ि कमल गये सिंधु में मिल्यौ कमल जब आय ।।
कमल-पुंज श्रीराधिका, कमलरूप घनस्याम ।
कमल-नैन, जलमय भए कमल नैन लखि बाम ।।
मार्ग में श्रीजी के हाथ सौं कृष्ण अन्तर्हित होयँ

श्रीजी- हैं! मेरे हाथ सौं वह बालक कहाँ गयौ? बाबा पूछैंगे, तब मैं उन कूँ कहा उत्तर दऊँगी?

लतान सौं निकसि कृष्ण बड़े रूप में श्रीजी कूँ दर्शन दैं

श्रीजी- तू-तू या समैं कौन, जो मेरी दृष्टि में आय रह्यौ है?

      श्रीकृष्ण-
(श्लोक)
त्वं मे प्राणाधिका राधा प्रेयसी च वरानने ।
यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावयोर्ध्रुवम् ।।
हे प्रिये! कहा आप गोलोक की बात कूँ भूलि गईं और मोहू कूँ भूलि गईँ? परंतु- मैं तुम कूँ नहीं भूल्यौ. मैं तुम कूँ भूलि जाऊँ- यह संभव नहीं। प्रिये! मेरे पास तुम सौं अधिक कोई बस्तु नहीं। मैं तुम्हें अपने जीवन की साध कहूँ, सोहू उचित नहीं लगै। वास्तव में हम और तुम दो नहीं- जो मैं हूँ, सो तुम हौ; जो तुम हौ, सो मैं हूँ। हम में नैंक हू भेद नहीं है। जैसे दूध में घौराई है, अग्नि में दाह-सक्ति है, ऐसैं ही हमारौ-तुम्हारौ संबंध है। यदि तुम न रहौ तौ मैं सृष्टि की रचना करिबे में कबहूँ समर्थ नहीं है सकूँ हूँ। कुम्हार मृत्तिका के बिना घट की रचना कर ही नहीं सकै है। स्वर्णकार सुवर्ण के बिना स्वर्ण-कुण्डल नहीं बनाय सकै है। तुम सृष्टि की आधारभूता सक्ति-स्वरूपिणी हौ- वाकौ अच्युत बीजरूप हूँ। सक्ति, बुद्धि, ग्यान, तेज- ये सब मोमें नित्य विद्यमान रहैं हैं। मेरे प्रान तुम्हारे लिए नित्य ब्याकुल रहैं हैं। मैं जा समै काहू के मुख सौं रा- सब्द सुनि लऊँ हूँ, तौ-

(श्लोक)
रा-शब्दं कुर्वतस्त्रस्तो ददामि भक्तिमुत्तमाम् ।
धा-शब्दं कुर्वतः पश्चाद्यामि श्रवणलोभतः ।।

वापै अति प्रसन्न हैकैं मैं अपनी बहुमूल्य संपत्ति प्रेम भक्ति वाकूँ दऊँ हूँ। किंतु अपने मन में भयभीत है जाऊँ हूँ कि वास्तव में ‘रा’ के उच्चारन कौ पुरस्कार तौ दै ही नहीं सक्यौ। और जा समैं वह ‘धा’ कौ उच्चारण करै है, तब तौ में वाकौ रिन चुकायवे में असमर्थ है जाऊँ, और दास बनि वाके पीछै-पीछै लग्यौ डोलूँ। मेरी प्रान-प्यारी कौ नाम मेरे कानन में अमृत-धार बहाय मेरे प्रानन कूँ सीतल-रसमय बनाय देय है।

       समाजी-
(पद)
श्रीराधा-गुन गावै प्रीतम राधा-नाम-सुधा बरसाय ।
श्रीराधा के प्रेमांकुर कूँ, राधा-पति ही सींचत आय ।।
भाव-सिंधु उमग्यौ तिहिं अवसर, प्रबल तरंग न तनहिं समाय ।
मथनहार लै प्रेम-रतन कूँ, सोऊ तामें चल्यौ बहाय ।।
रस अरु रसिक बहे जब जान्यौ, केवट आतुर लियौ उठाय ।
आज कुँवर पायौ जीवन-फल, विनवत तहाँ चतुर्मुख आय ।।
ब्रह्माजी- देवि! महायोगमणि, महाप्रभामयी मायेश्वरी, श्रीकृष्णचंद्र की आह्लादिनी शक्ति महाभावस्वरूपा श्रीराधा! महान सौभाग्य-फल दैवे कूँ, अति कियौ, वाके फलस्वरूप आपके चरनन के आज दर्शन भए।
(दोहा)
कृष्णरूपिणी, कृष्णप्रिय, पुनि पुनि जाचौं तोय ।
भक्ति अचल होय जुगल पद, कुँवरि! देहु बर सोय ।।
हे श्रीलीला-बिहारी-बिहारिन! अब अपनी लीला कौ कार्य प्रारंभ करौ।
क्रमश................

Comments

Popular posts from this blog

शुद्ध भक्त चरण रेणु

श्री शिक्षा अष्टकम

श्री राधा 1008 नाम माला